Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Wednesday, 3 September 2014

मेरे पूर्वजों की भूमि पर पहला कदम

''……चीनी मिल ने गन्ने का बकाया दिया नहीं, बैंक से लोन मिला नहीं,
 घर के सारे गाए-भैंस बिक चुके थे, आर्थिक हालात खराब थे,
 वह तनाव में रहने लगा और आखिरकार उसने खुदकुशी कर ली………''
बचपन से अपने पिताजी से सुनता आ रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाग़पत ज़िले
के बड़ौत के पास हमारे पूर्वजों का गाँव है 'टिकरी' जहाँ मैं कभी गया नहीं था
लेकिन शनिवार को खबर मिली कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक  गन्ना किसान ने आत्मगत्या कर ली है
चीनी मिल के गन्ना का पैसा न देने पर जिस किसान ने आत्महत्या की..... वो किसान 'टिकरी' का ही था
अगले ही दिन मैं स्टोरी करने चल दिया .... सोचा न था कि अपने पूर्वजों के गाँव में पहली बार कदम रखूँगा और वो भी ऐसे
उस किसान के घर पहुंचा तो उसके पिता, ससुर, और भाई ने बताया कि
चीनी मिल ने गन्ने का पैसा दिया नहीं , बैंक ने लोन दिया नहीं , घर के सारे गाए-भैंस बिक चुके थे
आर्थिक तंगी ने उस किसान को तनावग्रस्त कर डाला और उसने खुद अपने हाथों से अपने बच्चों को अनाथ और बीवी की मांग का सिन्दूर मिटा दिया
जब मैं उसकी पत्नी से बात करने पहुंचा तो वो मेरे सवाल करने पर इस क़दर रोने लगी कि………
ऐसा लगा मैने कुछ गलत सवाल कर दिया या फिर गलत तरीके से सवाल कर दिया
मुझसे उसकी हालत देखकर खुद से ही नाराज़गी होने लगी, और मैं वहां एक पल और रुकना नहीं चाहता था
लेकिन फिर मैंने खुद को समझाया कि ये सब दिखाना ही तो मेरा काम है
दुनिया देख तो ले कि कहने को तो नारा है 'जय जवान , जय किसान '
लेकिन हक़ीक़त में तो यहाँ 'जाए जवान , जाए किसान ' का सिस्टम है
बस इसके बाद मैं वहां और किसी से नहीं मिला , काम ख़त्म किया और रास्ते भर बस यही सोचता रहा
कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो बेहद समृद्ध और संपन्न इलाका माना जाता है
अगर यहाँ भी किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो चला है तो फिर देश में खेती करना कौन चाहेगा ?