मीडिया पर महाभारत
सोशल मीडिया नाम की रणभूमि-ए -कुरुक्षेत्र में दो सेनाएं हैं
एक तो है मोदी सेना और दूसरी है केजरीवाल सेना
ये दोनों ही सेनाएं इस समय राष्ट्रवाद का झंडा उठायें हुए हैं
दोनों ही देश में परिवर्तन और बदलाव कि बयार बहाने में लगे हैं
इन दोनों के मुदद्दे भी असल में एक से ही हैं
जैसे कि करप्शन हटाओ , वंशवाद हटाओ देश बचाओ देश बचाओ
पर मोदी सेना कहती है कांग्रेस हटाओ देश बचाओ
और केजरीवाल सेना कहती है कांग्रेस-बीजेपी दोनों हटाओ और देश बचाओ
मुद्दे इन दोनों के भले एक से दिखते हो लेकिन ये कभी एक दूसरे से सहमत नहीं हो सकते
इन दोनों का एक बहुत बड़ा और प्रिय मुद्दा है
'पेड मीडिया', दोनों का ही ये आरोप सदा रहता है कि मीडिया हमको नहीं दिखा रहा
मोदी सेना कि शिकायत कि मीडिया राहुल गांधी और केजरीवाल को इतना दिखा रहा है लेकिन हमारे मोदीजी को नहीं
और केजरीवाल सेना कहती है मोदी और राहुल कि रैली इतनी दिखाई जा रही है हमारे लेकिन केजरीवाल की नहीं
अब सवाल ये है कि ये दोनों एक साथ सही कैसे हो सकते हैं ?
इस बीच अब राहुल सेना भी धीरे धीरे नज़र आ रही है हालांकि सोशल मीडिया नाम के इस कुरुक्षेत्र में
उनकी सेना कि मौजूदगी ऐसी है जैसे कोई सेनापति अपनी एक छोटी सी टुकड़ी को अपने दुश्मन कि हलचल पर नज़र के लिए भेजता है
लेकिन इस रणभूमि के बाहर बहुत से कांग्रेसी नेता मीडिया से गज़ब किलसे हुए हैं
उनकी भी शिकायत है कि आप बस मोदी और केजरीवाल ही दिखा रहे हो देश की सबसे पुरानी पार्टी को आप नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?
उनके मुताबिक़ भी मीडिया बिका हुआ है और कांग्रेस विरोधी एजेंडा पर लगा हु आ है
ये तीन ही नहीं हैं , उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की राय भी इससे कुछ ख़ास अलग है क्या?
और हाँ सालों से देश में संघर्ष कर रहे लाल सलाम वाले वाम दल वालों से भी ज़रा पूछ लो उनकी राय क्या है इस बारे में ..... ज़यादा अलग नहीं मिलेगी
अब सवाल ये है कि इतने सारे लोग एक साथ सही कैसे हो सकते हैं
यहाँ एक किस्सा याद आया जो फिट बैठता है इस मौके पर
एक दफा मायावती जब उत्तर प्रदेश कि मुख्यमंत्री थी तो नॉएडा एक कार्यक्रम में आयी
शायद उनके महत्वाकांक्षी मूर्ति वाले का कोई शिलान्यास या उदघाटन रहा होगा
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए नॉएडा आना शायद शुभ नहीं माना जाता
मुलायम सिंह यादव इससे पहले मुख्यमंत्री रहे लेकिन नहीं कभी नॉएडा
इसलिए जब बहनजी आयी तो टीवी चैनल्स ने उनको अच्छे से कवर किया चर्चा के लिए राजनैतिक मेहमान भी बुलाये
चर्चा मायावती के बोलने के बाद होनी थी एक न्यूज़ चैनल पर लेकिन मायावती ने तय वक़्त के बाद भाषण दिया
जिससे कि स्टूडियो में बैठे मेहमान को ज़यादा इंतज़ार करना पड़ा
तो भाषण के बाद जैसे ही चर्चा शुरू हुई तो एक पॉलिटिकल पार्टी के प्रवता ने कहा
''मैं पहली बार देख रहा हूँ कि एक मुख्यमंत्री को एक नेशनल न्यूज़ चैनल में इतना समय देकर लाइव दिखाया जा रहा है ''
एंकर भी बड़ा नामी और ज्ञानी था उसने भी तपाक से जवाब दिया
''ये वही न्यूज़ चैनल्स हैं जो एक राष्ट्रीय पार्टी के महासचिव को कवर करने मीलों दूर तक अपनी ओबी वैन उसके पीछे लगा देते हैं ''
उम्मीद है आप समझ गए होंगे कि ये किस्सा क्या है
नहीं भी समझे तो कोई बात नहीं , आपको मेरी बात वैसे तो समझ आ ही गयी होगी
यहाँ मैं ये ज़रूर कहना चाहुंगा कि मैं किसी बात को या किसी आरोप को नकार नहीं रहा
हर समाज में सही और गलत , अच्छा और बुरा , ईमानदार और बेईमान दोनों तरह के लोग होते हैं
बल्कि मैं तो यहाँ तक कहना चाहूंगा कि मीडिया में जितनी बड़ी समस्या होने के आरोप लग रहे हैं
समस्या उससे ज़यादा गम्भीर है, आरोप तो केवल आसानी से सरलता से ये लग रहे है ना कि मीडिया बिकाऊ है
ठीक है इस बात की जांच से मना कौन कर रहा है ?
लेकिन इस बात को समझिये कि जनता कि नज़र में मीडिया 'मीडिया ' ही होता है
एक दो या चार चैनल नहीं , बड़े शहर में रहने वाले तो अलग अलग अखबारों या चैनल में फर्क कर लेते हैं
लेकिन छोटे शहरों और क़स्बों में रहना वाला आदमी इतनी गहराई में नहीं जाता
उसके लिए तो पूरा मीडिया एक ही होता है
उसको ही नेता डिस्क्रेडिट कर देंगे तो उन ईमानदारों का क्या होगा जो पत्रकारिता के माध्यम से देश के असल मुद्दे उठा रहे हैं ?
समस्या जो आपको दिख रही है केवल वो ही नहीं है
समस्या ये भी ये भी है कि दूर दराज में फैले स्ट्रिंगर्स की हालत क्या है?
मीडिया में पिछले दिनों में लगातार हो रही छंटनी पर कितनों का आक्रोश फूटा ?
एक मीडिया हाउस कितने राज्यों में अपना 'एक' ऑफिस चला पा रहा है?
मैं ये भी मानता हूँ कि देश में लोग मीडिया से नाराज़ हैं
मानता हूँ कि मीडिया का काम करने का तरीका ऐसा रहा कि आम जनता नाराज़ ही होगी
हम ऐसी कितनी खबरें करते हैं हैं जिसका सीधा फायदा आम जनता या आम आदमी को मिलता होगा
ऐसा हम कितनी बार करते हैं कि एक आम अनजान आदमी ने हमसे मदद मांगी और हम कर पाये
देश में जनता मीडिया से इतनी नाराज़ क्यूँ है कि जब जब कोई नेता मीडिया
का मज़ाक बनाता या हमला करता है तो पब्लिक खुश होकर तालियां पिटती है
असल में बात ये है कि आज़ादी के बाद से अब तक ना तो नेता ने जनता की कोई सुनी
ना ही कोई सरकारी दफ्तर में बैठे अधिकारियों या बाबुओं ने
किसी गरीब के साथ कोई घटना हो जाए तो थाने में जाकर उसके साथ ऐसा सलूक होता हैं जैसे वो 'झूठ' बोलने थाने आया हो
और अदालतों के चक्कर में पड़कर तो ज़माने गुज़र जाते हैं लेकिन इन्साफ नहीं मिलता , मिलती है तो सिर्फ तारीख
अब ये लोकतंत्र के तीन खम्बे तो हो गए लोकतंत्र का चौथा खम्बा क्या करता रहा है ये तो हम देख ही रहे हैं
हम आम जनता कि कितनी बात सुन पा रहे हैं दिल पे हाथ रखकर सोचिये
समस्याओं से कौन इनकार कर रहा है
लेकिन इस सबके बावजूद मैं मानता हूँ कि समय समय पर मीडिया ने बहुत से सकारात्मक काम भी किए
ऐसे काम किये जिससे लोकतंत्र मज़बूत हुआ, कमज़ोर को ताक़त दी , बलवान पर कड़ी नज़र रखी
आलोचना कीजिये खूब जमकर कीजिये लेकिन भाषा और शब्दों का चयन भी अच्छा रखें
कृपया सिस्टम को तोड़िये मत, माना सिस्टम में दिक्कत है
लेकिन ये सिस्टम है तो हम सब हैं , वरना आज़ाद तो और भी देश हुए हैं, कहाँ पहुंचे हैं वो , और वहाँ के नागरिकों को कितनी आज़ादी है
सोशल मीडिया नाम की रणभूमि-ए -कुरुक्षेत्र में दो सेनाएं हैं
एक तो है मोदी सेना और दूसरी है केजरीवाल सेना
ये दोनों ही सेनाएं इस समय राष्ट्रवाद का झंडा उठायें हुए हैं
दोनों ही देश में परिवर्तन और बदलाव कि बयार बहाने में लगे हैं
इन दोनों के मुदद्दे भी असल में एक से ही हैं
जैसे कि करप्शन हटाओ , वंशवाद हटाओ देश बचाओ देश बचाओ
पर मोदी सेना कहती है कांग्रेस हटाओ देश बचाओ
और केजरीवाल सेना कहती है कांग्रेस-बीजेपी दोनों हटाओ और देश बचाओ
मुद्दे इन दोनों के भले एक से दिखते हो लेकिन ये कभी एक दूसरे से सहमत नहीं हो सकते
इन दोनों का एक बहुत बड़ा और प्रिय मुद्दा है
'पेड मीडिया', दोनों का ही ये आरोप सदा रहता है कि मीडिया हमको नहीं दिखा रहा
मोदी सेना कि शिकायत कि मीडिया राहुल गांधी और केजरीवाल को इतना दिखा रहा है लेकिन हमारे मोदीजी को नहीं
और केजरीवाल सेना कहती है मोदी और राहुल कि रैली इतनी दिखाई जा रही है हमारे लेकिन केजरीवाल की नहीं
अब सवाल ये है कि ये दोनों एक साथ सही कैसे हो सकते हैं ?
इस बीच अब राहुल सेना भी धीरे धीरे नज़र आ रही है हालांकि सोशल मीडिया नाम के इस कुरुक्षेत्र में
उनकी सेना कि मौजूदगी ऐसी है जैसे कोई सेनापति अपनी एक छोटी सी टुकड़ी को अपने दुश्मन कि हलचल पर नज़र के लिए भेजता है
लेकिन इस रणभूमि के बाहर बहुत से कांग्रेसी नेता मीडिया से गज़ब किलसे हुए हैं
उनकी भी शिकायत है कि आप बस मोदी और केजरीवाल ही दिखा रहे हो देश की सबसे पुरानी पार्टी को आप नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?
उनके मुताबिक़ भी मीडिया बिका हुआ है और कांग्रेस विरोधी एजेंडा पर लगा हु आ है
ये तीन ही नहीं हैं , उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की राय भी इससे कुछ ख़ास अलग है क्या?
और हाँ सालों से देश में संघर्ष कर रहे लाल सलाम वाले वाम दल वालों से भी ज़रा पूछ लो उनकी राय क्या है इस बारे में ..... ज़यादा अलग नहीं मिलेगी
अब सवाल ये है कि इतने सारे लोग एक साथ सही कैसे हो सकते हैं
यहाँ एक किस्सा याद आया जो फिट बैठता है इस मौके पर
एक दफा मायावती जब उत्तर प्रदेश कि मुख्यमंत्री थी तो नॉएडा एक कार्यक्रम में आयी
शायद उनके महत्वाकांक्षी मूर्ति वाले का कोई शिलान्यास या उदघाटन रहा होगा
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए नॉएडा आना शायद शुभ नहीं माना जाता
मुलायम सिंह यादव इससे पहले मुख्यमंत्री रहे लेकिन नहीं कभी नॉएडा
इसलिए जब बहनजी आयी तो टीवी चैनल्स ने उनको अच्छे से कवर किया चर्चा के लिए राजनैतिक मेहमान भी बुलाये
चर्चा मायावती के बोलने के बाद होनी थी एक न्यूज़ चैनल पर लेकिन मायावती ने तय वक़्त के बाद भाषण दिया
जिससे कि स्टूडियो में बैठे मेहमान को ज़यादा इंतज़ार करना पड़ा
तो भाषण के बाद जैसे ही चर्चा शुरू हुई तो एक पॉलिटिकल पार्टी के प्रवता ने कहा
''मैं पहली बार देख रहा हूँ कि एक मुख्यमंत्री को एक नेशनल न्यूज़ चैनल में इतना समय देकर लाइव दिखाया जा रहा है ''
एंकर भी बड़ा नामी और ज्ञानी था उसने भी तपाक से जवाब दिया
''ये वही न्यूज़ चैनल्स हैं जो एक राष्ट्रीय पार्टी के महासचिव को कवर करने मीलों दूर तक अपनी ओबी वैन उसके पीछे लगा देते हैं ''
उम्मीद है आप समझ गए होंगे कि ये किस्सा क्या है
नहीं भी समझे तो कोई बात नहीं , आपको मेरी बात वैसे तो समझ आ ही गयी होगी
यहाँ मैं ये ज़रूर कहना चाहुंगा कि मैं किसी बात को या किसी आरोप को नकार नहीं रहा
हर समाज में सही और गलत , अच्छा और बुरा , ईमानदार और बेईमान दोनों तरह के लोग होते हैं
बल्कि मैं तो यहाँ तक कहना चाहूंगा कि मीडिया में जितनी बड़ी समस्या होने के आरोप लग रहे हैं
समस्या उससे ज़यादा गम्भीर है, आरोप तो केवल आसानी से सरलता से ये लग रहे है ना कि मीडिया बिकाऊ है
ठीक है इस बात की जांच से मना कौन कर रहा है ?
लेकिन इस बात को समझिये कि जनता कि नज़र में मीडिया 'मीडिया ' ही होता है
एक दो या चार चैनल नहीं , बड़े शहर में रहने वाले तो अलग अलग अखबारों या चैनल में फर्क कर लेते हैं
लेकिन छोटे शहरों और क़स्बों में रहना वाला आदमी इतनी गहराई में नहीं जाता
उसके लिए तो पूरा मीडिया एक ही होता है
उसको ही नेता डिस्क्रेडिट कर देंगे तो उन ईमानदारों का क्या होगा जो पत्रकारिता के माध्यम से देश के असल मुद्दे उठा रहे हैं ?
समस्या जो आपको दिख रही है केवल वो ही नहीं है
समस्या ये भी ये भी है कि दूर दराज में फैले स्ट्रिंगर्स की हालत क्या है?
मीडिया में पिछले दिनों में लगातार हो रही छंटनी पर कितनों का आक्रोश फूटा ?
एक मीडिया हाउस कितने राज्यों में अपना 'एक' ऑफिस चला पा रहा है?
मैं ये भी मानता हूँ कि देश में लोग मीडिया से नाराज़ हैं
मानता हूँ कि मीडिया का काम करने का तरीका ऐसा रहा कि आम जनता नाराज़ ही होगी
हम ऐसी कितनी खबरें करते हैं हैं जिसका सीधा फायदा आम जनता या आम आदमी को मिलता होगा
ऐसा हम कितनी बार करते हैं कि एक आम अनजान आदमी ने हमसे मदद मांगी और हम कर पाये
देश में जनता मीडिया से इतनी नाराज़ क्यूँ है कि जब जब कोई नेता मीडिया
का मज़ाक बनाता या हमला करता है तो पब्लिक खुश होकर तालियां पिटती है
असल में बात ये है कि आज़ादी के बाद से अब तक ना तो नेता ने जनता की कोई सुनी
ना ही कोई सरकारी दफ्तर में बैठे अधिकारियों या बाबुओं ने
किसी गरीब के साथ कोई घटना हो जाए तो थाने में जाकर उसके साथ ऐसा सलूक होता हैं जैसे वो 'झूठ' बोलने थाने आया हो
और अदालतों के चक्कर में पड़कर तो ज़माने गुज़र जाते हैं लेकिन इन्साफ नहीं मिलता , मिलती है तो सिर्फ तारीख
अब ये लोकतंत्र के तीन खम्बे तो हो गए लोकतंत्र का चौथा खम्बा क्या करता रहा है ये तो हम देख ही रहे हैं
हम आम जनता कि कितनी बात सुन पा रहे हैं दिल पे हाथ रखकर सोचिये
समस्याओं से कौन इनकार कर रहा है
लेकिन इस सबके बावजूद मैं मानता हूँ कि समय समय पर मीडिया ने बहुत से सकारात्मक काम भी किए
ऐसे काम किये जिससे लोकतंत्र मज़बूत हुआ, कमज़ोर को ताक़त दी , बलवान पर कड़ी नज़र रखी
आलोचना कीजिये खूब जमकर कीजिये लेकिन भाषा और शब्दों का चयन भी अच्छा रखें
कृपया सिस्टम को तोड़िये मत, माना सिस्टम में दिक्कत है
लेकिन ये सिस्टम है तो हम सब हैं , वरना आज़ाद तो और भी देश हुए हैं, कहाँ पहुंचे हैं वो , और वहाँ के नागरिकों को कितनी आज़ादी है
लाजवाब शरद भाई!! last की lines ने काफी अच्छा message दिया
ReplyDeleteमुझे लगता है केजरीवाल के कथन को आउट ऑफ़ थे कॉंटेक्सट देखा जा रहा है..वो भी मीडिया कि उसी बड़ी बीमारी कि तरफ इशारा कर रहे है..जो आप बता रहे है.. पर बड़ी बात ये है कि क्या वो जितनी भी बाते केह रहे है उसमे सच्चाई है..क्या मीडिया को पता नहीं है कि सड़न कहाँ है..एक चैनल का एडिटर ब्लैकमेल कर पैसे मांगते हुए पकड़ा जाता है..जैल भी जाता है..फिर भी वापस आ गया..ज़ी न्यूज़ के सुधीर चौधरी कि बात कर रहा हु..आप लोग कहते है मीडिया introspection करके सेल्फ करेक्ट करती है..मैंने तो नहीं देखा..बिना सर पैर कि खबरे चलती है..
ReplyDeleteकृपया सिस्टम को तोड़िये मत, माना सिस्टम में दिक्कत है
ReplyDeleteलेकिन ये सिस्टम है तो हम सब हैं , behad behatareen...
अच्छा लिखा आपने। अभी तक केवल रवीश कि ब्लॉग पढ़ती थी आज आपका ब्लॉग देखा अच्छा लग।
ReplyDeleteAapko ek link de raha hn...ye link ravish g ke blog ka h .is blog par ek comment kiya h ek blogger ne...akansha gupta naam se.....main us comment ko copy paste karna chah raha tha par 2 reasons ki vajah se nahi kar paaya isliye pad nahi paya...isliye aapse request h ki link follow karka khud pad lijiega...i m sure aapko aacha lagega...
ReplyDeletehttp://naisadak.blogspot.in/2014/03/blog-post_15.html?m=1
Very Nice...
ReplyDeleteJaise AK ne Political system ko hila diya.....kya koi AK Media main bhi ayega jo in sab se Media ko bahar la sake.
मीडिया बिका हुआ है इसमें कोई शक नहीं.आप मीडिया में काम करते हैं. थोडा बहुत इधर-उधर कर मीडिया को जस्टिफाई ही करेंगे. Vikki लीक्स और राडिया टेप मीडिया के किसी मर्ज की तरफ इशारा नहीं करता बल्कि यह उस मर्ज का MRI और CT-scan था.
ReplyDelete