Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Thursday, 28 August 2014

मैं और मेरी हिंदी

बात एक दशक पहले साल 2004 की है जब मैं पहली बार कॉलेज में गया
सारी क्लास एक साथ बैठी थी और जैसा कि शुरू में होता है
एक टीचर आई और उन्होंने कहा कि सब  Introduction दीजिये और बताइये यहाँ एडमिशन क्यों लिया
सबने Introduction देना शुरू किया , सभी बच्चे अंग्रेजी में अपना Introduction दे रहे थे
ऐसे में मेरे जैसा पूर्वी दिल्ली टाइप, केंद्रीय विद्यालय की नीली वर्दी वाला बालक सोच में पड़ गया
मुझे इंग्लिश आती थी लेकिन मैं हिंदी में बोलना चाहता था, मजबूरन मैंने इंग्लिश में अपना परिचय देकर कश्मकश खत्म की
मुझे डर था कि अगर मैंने सब इंग्लिश में बोलने वालों के बीच हिंदी में बोला तो मज़ाक बनेगा ,हसेंगे सब
वो डर गलत नहीं था, मेरे बोलने के कुछ देर के बाद जब एक लड़के ने हिंदी में परिचय दिया तो सब हँसे
उस दिन के बाद मेरे मन में एक सवाल हमेशा रहने लगा आखिर क्यों हम हिंदी बोलने वाले खुद को छोटा समझने लगते हैं ?
क्यों हमारे मन में हिंदी बोलते वक़्त एक तरह की हीन भावना आती है ?
वक़्त बीतता रहा और मैं मास कम्यूनिकेशन की क्लास में कम्यूनिकेशन के मूल सवाल पर अटका रहा
मैंने क्लास के बच्चों से यूहीं बातचीत करते हुए पाया कि बोलते तो ये भी हिंदी ही हैं लेकिन सबके सामने  इंग्लिश बोलने से अच्छा impression पड़ता है
साथ ही अगर हिंदी बोलेंगे तो ये लोग down market लगेंगे इसलिए सब दिखावा करके इंग्लिश बोले चले जा रहे थे
तब से मैंने फैसला किया कुछ भी हो जाए मैं हिंदी ही बोलूंगा खुलकर ,अब इस क्लास में हिंदी ही चलेगी
और बस फिर सब ऐसा होता चला गया कि सब लोग हिंदी ही बोलने लगे बेझिझक
अक्सर आरोप ये लगता है कि जिसको इंग्लिश नहीं आती वही हिंदी का राग अलापता है
पहले सेमेस्टर में इंग्लिश का पेपर हुआ तो मेरी उसमे distinction आई
और हिंदी के पेपर  के बारे में तो बताने की ज़रूरत ही नहीं है
दोस्तों अपनी बात को मनवाने के लिए खुद को साबित करना पड़ता है क्योंकि
''क्षमा शोभती उस भुजंग की , जिसके पास गरल हो '
कॉलेज के पहले दिन मैंने इंग्लिश में introduction दिया Hi , I am Sharad Sharma
वहीँ आखिरी दिन मैंने गर्व से बोला नमस्कार , मैं शरद शर्मा हूँ
कॉलेज के समय से मैंने हिंदी में लेख लिखने शुरू किये, बहस और चर्चा की
आज भी मैं हिंदी में रिपोर्टिंग करता हूँ , यहाँ फेसबुक पर ज़्यादातर बातें हिंदी में लिखता हूँ
इसका मतलब ये बिलकुल नहीं कि कोई इंग्लिश के खिलाफ है , या इंग्लिश नहीं सीखनी चाहिए
मैं तो कहता हूँ कि ज्ञान तो जितना ज़्यादा लिया जाए उतना बढ़िया है आपको फायदा ही होगा
लेकिन हिंदी हमारी मातृ भाषा है , यानी हमारी माँ की भाषा
अपनी माँ की भाषा में हमको बोलने , लिखने या काम करने में शर्म क्यों आये?
गर्व से कहिये हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा

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