Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Saturday, 17 December 2016

हम करें संघर्ष, उनको मिले संरक्षण?


कितने कमाल की बात है कि केंद्र सरकार कह रही है कि पोलिटिकल पार्टियां नोटबंदी के दायरे में नहीं आती।
ना ही बैंक में 500/1000 के नोट बैंक में जमा करने में उनको कोई हिसाब नहीं देना, ना टैक्स देना और ना ही कोई जुर्माना

मैं कहता हूँ ........

1. पोलिटिकल पार्टियां क्या स्वयं भगवान द्वारा बनाई गई संस्थाएं हैं जो उनपर आम जनता वाला कानून लागू नहीं होता?

2. जब देश के लोग काले धन की समाप्ति के लिए नोटबंदी झेल/स्वीकार सकते हैं तो फिर पोलिटिकल पार्टियां क्यों नहीं? और क्यों केंद्र सरकार उनको मिलने वाली छूट जारी रखे हुए है?

3. नोटबंदी का साफ़ और सीधा मतलब है 500/1000 के पुराने नोट बंद। इसके या उसके लिए नहीं हर भारतवासी के लिए। तो क्या पोलिटिकल पार्टियां भारतीय नहीं?

4.देश के आम लोग कालेधन समाप्ति के लिये नोटबंदी में संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पोलिटिकल पार्टियों को कानून की आड़ में संरक्षण दिया जा रहा है?

हालाँकि सरकार एक कानून का हवाला दे रही जिसके तहत पोलिटिकल पार्टियों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स में नहीं आता। कानूनन पोलिटिकल पार्टियों को छूट है कि ......

1. कितना भी चंदा नगद में ले सकते हैं
2. बीस हज़ार तक मिला चन्दा किसने दिया उसका स्रोत बताने की कोई ज़रूरत नहीं।
3. बीस हज़ार से ऊपर का चंदा किसने दिया उसका नाम चुनाव आयोग को बताना होता है लेकिन टैक्स नाम की चीज़ कहीं नहीं इनके लिए

अब क्योंकि पोलिटिकल पार्टियों को 20 हज़ार तक के चंदे देने वाले का नाम किसी को बताने की ज़रूरत नहीं इसलिये पोलिटिकल पार्टियों का करीब 80 फीसदी चंदा 20 हज़ार के नीचे के सेगमेंट में ही दिखता है। अब ये चंदा कौन दे रहा है और कौन नहीं कुछ पता ही नहीं

ये आम धारणा है कि काला धन इसी तरह से पोलिटिकल पार्टियों के खाते में आता है और सालों से पर बहस चल रही है कि पोलिटिकल फंडिंग कानून में सुधार किया जाए लेकिन हुआ आज तक कुछ नहीं।

एक न्यूज़ चैनल के संपादक ने एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से जब पोलिटिकल फंडिंग पर सवाल पूछा

'संपादक: क्यों ना पोलिटिकल पार्टियां अपना चंदा कैश ना लेकर चेक से या डिजिटल तरीके से लें और अपने पूरे चंदे का स्रोत बताये

पीयूष गोयल: अच्छा सुझाव है। जिसपर आम राय बननी चाहिए

संपादक: नोटबंदी पर कौन सी आम राय थी...आपने लागू की, ये भी कानून बना दीजिये.....

पीयूष: (यहाँ मंत्री जी शब्द के शब्द नहीं सार याद है....कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया)'

मेरा बस एक ही सवाल है.....

जब तक देश की राजनीती में काले धन की संभावना होगी तब तक हम अपने सिस्टम को कितना ईमानदार और स्वच्छ कह पाएंगे? ज़रा सोचकर देखें कि अगर कालेधन का प्रयोग करके कोई नेता या पार्टियां हमपर शासन करेंगी तो वो कैसे ईमानदार, निष्पक्ष और साफ़ सुथरी गवर्नेंस हमको दे पाएंगी? बुराई केवल बुराई को बढ़ावा देती है अच्छाई को नहीं।

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी का एक महीना

नोटबंदी को अब एक महीना हो गया है
इस एक महीने का सार या लब्बोलुआब मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है
अब मैं बेहद कंजूस हो चुका हूँ
100 के 4 नोट जेब से निकालने पर ऐसा लगता है मानो मैं 4,000 रुपये खर्च कर रहा हूँ
₹2000 का नोट देखकर माथे में बल पड़ जाते हैं
एक तो उसकी क्वालिटी इतनी हल्की लगती है
ऊपर से मन में आता है कि इसके छुट्टे कहाँ होंगे?
₹100 का नोट अब सबसे शानदार और जानदार लगता है
गांव से लेकर शहर, दिल्ली, यूपी, हरियाणा सबमें अब समानता सी आ गई है कहीं भी ATM में पैसा नहीं मिलता
पहले जब मेरे पास थोड़ा फुर्सत का समय या छुट्टी का दिन होता था तो मैं परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता था या दोस्तों से फ़ोन पर बात करता था और कभी कभी मिल भी लेता था
लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है सोचता हूँ 'यार क्यों ना बैंक या ATM से पैसे निकालने की कोशिश करूँ?'
आज भी ढेर सारे बैंक और ATM पर लंबी लंबी कतारें हैं
जब अपने बैंक की शाखा पर पैसे निकालने पहुंचा तो भीड़ नहीं थी😊
लेकिन जब अंदर घुसा तो बैंक मैनेजर ने बताया कि पैसा भी नहीं है, आज पैसा आएगा लेकिन किस टाइम पता नहीं😢
कुल मिलाकर बात ये है कि अब हम सबका ध्यान बस पैसों में ही लगा रहता है
पहले बैंक से घंटों/दिनों लाइनों में लगकर पैसा निकालने की जद्दोजहद
उसके बाद ये रोना कि जितने हमने मांगे थे बैंक ने उतने नहीं दिए
फिर उन थोड़े बहुत पैसों को खर्च करते समय दिल पर पड़ता बोझ
फिर थोड़े से पैसे झट से ख़त्म होने पर फिर वही कतार में लगने की पीड़ा।
ऊपर से दिल जलाने वाली खबर ये कि काले धन वाला या कोई बड़ा आदमी तो इन कतारों में हमारे साथ दिख नहीं रहा बल्कि कमीशन देकर अपने ब्लैक को व्हाइट कर रहा है
500-1000 ले नोट जमकर ₹2000 के नोटों में बदल रहे हैं
खैर कोई बात नहीं थोड़े दिन बीत गए हैं,थोड़े और बीत जाएंगे
डर बस ये है कि हमने तो खूब धैर्य धर लिया, मुश्किल समय काटने की जी भरके कोशिश करी
लेकिन क्या जिस काले धन की समाप्ति का सपना हमने नोटबंदी में देखा वो पूरा हो पाएगा?
एक महीना हो चुका है, 22 दिन अभी बाकी हैं...

Monday, 5 December 2016

नोटबंदी पर कुछ सवाल

मैं नोटबंदी का समर्थक हूँ
क्योंकि देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मानता हूँ कि काला धन नाम की दीमक को ख़त्म करने का ये अच्छा उपाय हो सकता है
8 नवम्बर की रात जब पीएम मोदी ने ऐलान किया तो मैंने इसको सकारात्मक रूप से लिया
एक रिपोर्टर के नाते इससे लोगों को हो रही परेशानियां कवर की
सरकार के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त को सामने लाने का  धर्म भी निभाया
तमाम परेशानियों के बीच जितने लोगों से मैं मिला ज़्यादातर बोले कि मोदीजी का निर्णय तो अच्छा है लेकिन ये बैंक वाले गड़बड़ कर रहे हैं और हमको पैसा नहीं दे रहे बस अपने ख़ास लोगों को पैसा बाँट दे रहे हैं
लेकिन अब 4 हफ़्ते की नोटबंदी के बाद आम लोगों और मेरे मन कुछ सवाल उठ रहे है

सवाल

सवाल ये है कि जब RBI के निर्देश के मुताबिक आम लोग अधिकतम ₹24,000 और व्यापारी लोग ₹50,000  हर हफ़्ते ही बैंक से कैश निकाल सकते हैं(वैसे तो इतने भी नहीं मिल रहे ज़्यादातर को)

तो फिर ये ₹2,000 के नोट की गड्डियां (₹2,000×100 नोट मूल्य 2 लाख)कैसे घूम रही हैं मार्किट में जिनको कमीशन पे बेचा और खरीदा जा रहा है।

ध्यान दीजिए कि RBI के निर्देश के मुताबिक वो देश का सबसे बड़ा उद्योगपति क्यों ना हो उसको निजी तौर पर केवल 24,000 रुपए यानी 2,000 के 12 नोट प्रति हफ़्ते और अपनी फर्म/कंपनी के नाम पर 50,000 रुपये यानी 2,000 के 25 नोट प्रति हफ़्ते ही मिल सकते हैं तो ये 100 नोट की 2,000 रुपये की गड्डी जिसका मूल्य 2 लाख रुपये है वो बैंक के अलावा किसी के पास कैसे हो सकती है?

और पुराने 500 और 1000 के नोट के बदले ये कमीशन पर खूब सप्लाई की जा रही हैं।

क्या ये RBI और सरकार के सिस्टम को कटघरे में खड़ा नहीं करता?

क्या इससे नोटबंदी की योजना निरर्थक नहीं हो रही?

क्या आम लोगों का वो संघर्ष बेकार जाता नहीं दिख रहा जो उन्होंने घंटों/दिनों बैंकों/ATM के आगे लाइन में लगकर किया?

क्या इससे ये सन्देश नहीं जाता कि काला धन वाले अपने पैसे के दम पर सरकार को मुंह चिढ़ा रहे हैं और आम लोग खुद के साथ धोखा हुआ महसूस कर रहे हैं?

मेरी बात पर यकीन ना हो तो मेरे आगे बताये अनुभव के आधार पर खुद सोचियेगा। 8 नवम्बर की रात से कालाधन वाले दहशत में थे और आम लोग खुश थे लेकिन आज आप किसी भी काला धन वाले से बात कीजिये वो सब खुश हैं क्योंकि नोट बदल गए होंगे और किसी भी आम आदमी से बात कीजिये वो परेशान होगा क्योंकि उसकी मेहनत की कमाई बैंक से निकल नहीं पा रही

देश के आम लोग कह रहे हैं 'योजना तो ये अच्छी है लेकिन ठीक से लागू नहीं हो रही' और मैं कहता हूँ 'योजना तो सरकार की ज़्यादातर अच्छी ही होती है लेकिन ठीक से लागू भी तो होनी चाहिए, अगर ठीक से लागू ही नहीं हुई तो उस योजना का फायदा क्या हुआ?'