कितने कमाल की बात है कि केंद्र सरकार कह रही है कि पोलिटिकल पार्टियां नोटबंदी के दायरे में नहीं आती।
ना ही बैंक में 500/1000 के नोट बैंक में जमा करने में उनको कोई हिसाब नहीं देना, ना टैक्स देना और ना ही कोई जुर्माना
मैं कहता हूँ ........
1. पोलिटिकल पार्टियां क्या स्वयं भगवान द्वारा बनाई गई संस्थाएं हैं जो उनपर आम जनता वाला कानून लागू नहीं होता?
2. जब देश के लोग काले धन की समाप्ति के लिए नोटबंदी झेल/स्वीकार सकते हैं तो फिर पोलिटिकल पार्टियां क्यों नहीं? और क्यों केंद्र सरकार उनको मिलने वाली छूट जारी रखे हुए है?
3. नोटबंदी का साफ़ और सीधा मतलब है 500/1000 के पुराने नोट बंद। इसके या उसके लिए नहीं हर भारतवासी के लिए। तो क्या पोलिटिकल पार्टियां भारतीय नहीं?
4.देश के आम लोग कालेधन समाप्ति के लिये नोटबंदी में संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पोलिटिकल पार्टियों को कानून की आड़ में संरक्षण दिया जा रहा है?
हालाँकि सरकार एक कानून का हवाला दे रही जिसके तहत पोलिटिकल पार्टियों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स में नहीं आता। कानूनन पोलिटिकल पार्टियों को छूट है कि ......
1. कितना भी चंदा नगद में ले सकते हैं
2. बीस हज़ार तक मिला चन्दा किसने दिया उसका स्रोत बताने की कोई ज़रूरत नहीं।
3. बीस हज़ार से ऊपर का चंदा किसने दिया उसका नाम चुनाव आयोग को बताना होता है लेकिन टैक्स नाम की चीज़ कहीं नहीं इनके लिए
अब क्योंकि पोलिटिकल पार्टियों को 20 हज़ार तक के चंदे देने वाले का नाम किसी को बताने की ज़रूरत नहीं इसलिये पोलिटिकल पार्टियों का करीब 80 फीसदी चंदा 20 हज़ार के नीचे के सेगमेंट में ही दिखता है। अब ये चंदा कौन दे रहा है और कौन नहीं कुछ पता ही नहीं
ये आम धारणा है कि काला धन इसी तरह से पोलिटिकल पार्टियों के खाते में आता है और सालों से पर बहस चल रही है कि पोलिटिकल फंडिंग कानून में सुधार किया जाए लेकिन हुआ आज तक कुछ नहीं।
एक न्यूज़ चैनल के संपादक ने एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से जब पोलिटिकल फंडिंग पर सवाल पूछा
'संपादक: क्यों ना पोलिटिकल पार्टियां अपना चंदा कैश ना लेकर चेक से या डिजिटल तरीके से लें और अपने पूरे चंदे का स्रोत बताये
पीयूष गोयल: अच्छा सुझाव है। जिसपर आम राय बननी चाहिए
संपादक: नोटबंदी पर कौन सी आम राय थी...आपने लागू की, ये भी कानून बना दीजिये.....
पीयूष: (यहाँ मंत्री जी शब्द के शब्द नहीं सार याद है....कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया)'
मेरा बस एक ही सवाल है.....
जब तक देश की राजनीती में काले धन की संभावना होगी तब तक हम अपने सिस्टम को कितना ईमानदार और स्वच्छ कह पाएंगे? ज़रा सोचकर देखें कि अगर कालेधन का प्रयोग करके कोई नेता या पार्टियां हमपर शासन करेंगी तो वो कैसे ईमानदार, निष्पक्ष और साफ़ सुथरी गवर्नेंस हमको दे पाएंगी? बुराई केवल बुराई को बढ़ावा देती है अच्छाई को नहीं।