नोटबंदी को अब एक महीना हो गया है
इस एक महीने का सार या लब्बोलुआब मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है
अब मैं बेहद कंजूस हो चुका हूँ
100 के 4 नोट जेब से निकालने पर ऐसा लगता है मानो मैं 4,000 रुपये खर्च कर रहा हूँ
₹2000 का नोट देखकर माथे में बल पड़ जाते हैं
एक तो उसकी क्वालिटी इतनी हल्की लगती है
ऊपर से मन में आता है कि इसके छुट्टे कहाँ होंगे?
₹100 का नोट अब सबसे शानदार और जानदार लगता है
गांव से लेकर शहर, दिल्ली, यूपी, हरियाणा सबमें अब समानता सी आ गई है कहीं भी ATM में पैसा नहीं मिलता
पहले जब मेरे पास थोड़ा फुर्सत का समय या छुट्टी का दिन होता था तो मैं परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता था या दोस्तों से फ़ोन पर बात करता था और कभी कभी मिल भी लेता था
लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है सोचता हूँ 'यार क्यों ना बैंक या ATM से पैसे निकालने की कोशिश करूँ?'
आज भी ढेर सारे बैंक और ATM पर लंबी लंबी कतारें हैं
जब अपने बैंक की शाखा पर पैसे निकालने पहुंचा तो भीड़ नहीं थी😊
लेकिन जब अंदर घुसा तो बैंक मैनेजर ने बताया कि पैसा भी नहीं है, आज पैसा आएगा लेकिन किस टाइम पता नहीं😢
कुल मिलाकर बात ये है कि अब हम सबका ध्यान बस पैसों में ही लगा रहता है
पहले बैंक से घंटों/दिनों लाइनों में लगकर पैसा निकालने की जद्दोजहद
उसके बाद ये रोना कि जितने हमने मांगे थे बैंक ने उतने नहीं दिए
फिर उन थोड़े बहुत पैसों को खर्च करते समय दिल पर पड़ता बोझ
फिर थोड़े से पैसे झट से ख़त्म होने पर फिर वही कतार में लगने की पीड़ा।
ऊपर से दिल जलाने वाली खबर ये कि काले धन वाला या कोई बड़ा आदमी तो इन कतारों में हमारे साथ दिख नहीं रहा बल्कि कमीशन देकर अपने ब्लैक को व्हाइट कर रहा है
500-1000 ले नोट जमकर ₹2000 के नोटों में बदल रहे हैं
खैर कोई बात नहीं थोड़े दिन बीत गए हैं,थोड़े और बीत जाएंगे
डर बस ये है कि हमने तो खूब धैर्य धर लिया, मुश्किल समय काटने की जी भरके कोशिश करी
लेकिन क्या जिस काले धन की समाप्ति का सपना हमने नोटबंदी में देखा वो पूरा हो पाएगा?
एक महीना हो चुका है, 22 दिन अभी बाकी हैं...
Sharad Sharma, Reporter, NDTV
Thursday, 8 December 2016
नोटबंदी का एक महीना
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