Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Tuesday, 30 May 2017

गाय पर पहली बार कुछ लिखा.....

जब से मैंने होश संभाला तभी से खुद में एक भाव देखा
मैं जब जब अपने दादाजी के यहां बड़ौत (बाग़पत) जाया करता
तो वहां घर की गाय पर मुझे बड़ा प्यार आता था
मैं गाय को पानी पिलाता, चारा डालता और प्यार से उसकी गर्दन पर हाथ फेरता
हमारे यहां खाने के वक़्त पहली रोटी गाय को जाती थी
यही नही मुझे बाकी जगह भी कहीं गाय दिख जाती तो मैं प्यार से उसकी गर्दन पर हाथ फेर देता (आज भी ऐसा करता हूँ)
और गाय का पीला दूध पीने का मौका मैं कभी नही छोड़ता था
लेकिन मुझे बचपन मे कभी समझ नही आया कि मेरे भीतर गाय के प्रति ये भाव क्यों है
जवान होते होते मुझे केवल अपने ही नही बल्कि करोड़ों देशवासियों के गाय के प्रति सम्मान का राज़ पता चला
दरअसल इस संसार मे आदिशक्ति का सबसे पहला अवतरण एक गाय के रूप में हुआ
जिसका नाम था 'सुरभि'
और ये गाय रूपी अवतरण 33 करोड़ देवी-देवता
भीतर धारण किये हुए था
उसी के चलते आज भी भारत के करोड़ों लोग
गाय को माँ का दर्जा देते हैं और उसको पूजनीय मानते हैं
लेकिन ये बात केवल भारत की देसी गाय पर लागू होती है
वो देसी गाय जो सदियों से भारत में घरों में बंधी होती है
और वो इतनी सुंदर होती है कि आपको उसको देखते ही प्यार उमड़ता है (विदेशी नस्ल की गाय पर ऐसा कुछ नही होता)
भगवान श्री कृष्ण ने भी द्वापर युग मे गाय की खूब सेवा की और उसके महत्व का प्रचार किया
लेकिन आज कलियुग में गाय के ऊपर जो तमाशा चल रहा है ये केवल आपका दिमाग खराब करने वाला है
ये वो राजनीति है जिससे आम लोगों को कोई फायदा नही होने वाला
गाय पूर्ण रूप से आस्था का प्रश्न है
मेरे लिए गाय माता समान है इसलिए पूजनीय है
जिसके लिए नही है उसके लिए केवल एक पशु
देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग परंपरा, रिवाज, संस्कृति है और हमने इसी अनेकता में एकता को अपनाया है
इसलिये अगर गौ माता के लिए अगर कुछ करना है तो
जागरूकता फैलाएं, प्लान बनाएं, लागू कराएं
लोगों को गो मांस खाने के नुकसान बताएं
गाय कूड़ेघर में कूड़ा और पॉलिथीन खाकर ना मरे इसके लिए पालिसी बनाएं
दूध न देने वाली जिन गाय को लोग खुला छोड़ देते हैं
उन सड़क पर घूमने वाली गाय के लिए हर ज़िले में
एक गौशाला बनाई जाए जहां उनकी असल मे सेवा हो
बहुत सारी गोशाला में हम दान देते हैं लेकिन फिर भी गाय को ठीक से खाने को मिलता नही
गाय का ठीक से उपचार करवा कर देखा जाए उसने दूध देना क्यों बंद कर दिया या ये कम दूध क्यों देती है?
बहुत सी गाय तो कसाई के यहां इसलिये बेची जाती है क्योंकि वो दूध देने लायक नही रह जाती
और लोगों के पास इतने संसाधन भी नही होते कि वो गाय को बस बैठाकर खिलाएं
क्यों विदेशी गाय खूब दूध देती हैं और देसी गाय बहुत ही कम?
गाय के लिए कुछ वाकई सोचना और करना है तो ये सोचें और करें। राजनीतिक ड्रामेबाज़ी से आम आदमी को कभी कुछ नही मिला ये ध्यान रखें।
अंत मे गाय की महिमा कुछ यूं देखें/सोचें
गाय जीते जी हमको दूध देती है जिससे हमारा शरीर फिट और दिमाग तेज़ बनता है
गोबर देती है जो खाद बनता है ईंधन बनता है
मरने के बाद अपनी खाल भी हमको देती है जिससे चमड़ा बनता है
वो बस हमको देती ही देती है
जीते जी भी और मरकर भी
इसलिये भी हम उसको माँ का दर्जा देते हैं
गौ माता को मेरा प्रणाम

Sunday, 19 February 2017

राजनीती में महिलाएं- एक अनुभव, एक नजरिया

कभी कभी सोचता हूँ कि राजनीती में महिलाओं को मज़बूत करने के नाम पर
स्थानीय निकाय/नगर पालिका/नगर निगम चुनावों में जो 33 % से लेकर 50 % सीटें आरक्षित होती हैं उनका क्या फायदा है ?
अब क्योंकि मैं दिल्ली का हूँ तो दिल्ली की ही बात करता हूँ
दिल्ली नगर निगम में कुल 272 में 136  यानि 50 % सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं
साल 2012 में पिछली बार जब यहाँ चुनाव हुए तो ज़्यादातर नेताओं ने ही अपनी पत्नी को चुनाव लडवा दिया
प्रचार के दौरान होर्डिंग पर उस महिला उम्मीदवार के साथ उसके पति की फोटो भी लगी होती थी
साथ ही महिला उम्मीदवार का नाम इस तरह लिखा जाता था कि लोगों को पता लग जाए कि ये किस नेता की पत्नी है
जैसे मान लीजिये महिला उम्मीदवार का नाम है रजनी शर्मा और उसके नेता पति का नाम है प्रकाश शर्मा
तो उस महिला उम्मीदवार का नाम ''रजनी प्रकाश शर्मा " लिखा जाएगा मानो ये बताया जा रहा हो कि
ये महिला उम्मीदवार केवल महिला सीट की वजह से है असल उम्मीदवार तो इसका पति है
यही नहीं जब कभी बाद में महिला पार्षद या महिला मेयर से मिलने जाते थे तो साथ में इनके नेता पति हमेशा मिलते थे
जो पहले हमसे मुद्दा पूछते थे और फिर अपनी पार्षद/मेयर पत्नी को समझाते थे और फिर वो हमको बयान देती थी
और मान लो हम ने थोड़ा सवाल इधर उधर किया तो बस उनकी हालात खराब
अब फिर नगर निगम के चुनाव आ रहे हैं और इस बार कुछ दूसरी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हुई हैं
एक पार्षद मुझे मिले। मैंने पूछा आप तो इस बार भी चुनाव के लिए तैयार होंगे, टिकट की क्या स्थिति है?
वो बोले "भाई मेरी सीट तो लेडीज़ सीट हो गई"
मैंने कहा तो अब क्या करोगे? वो बोले "अपनी पत्नी को लड़वाउंगा, टिकट के लिए अभी बात चल रही है"

मेरे कुछ सवाल हैं
1 . क्या केवल नेता की ही पत्नी के चुनाव लड़ने मात्र से राजनीती में महिलाएं मज़बूत हो जाएंगी ?
2 .  क्या चुनाव लड़ने से ही सब कुछ हो जाएगा ?
3 . उन नई बनी महिला नेताओं का क्या होगा जो पिछली बार तो नेता बनी लेकिन इस बार उनकी सीट पुरुष की गई (रोटेशन ). अब इनको इनके पति या इनकी पार्टी कहाँ मौका देगी ?
4 क्या अब भी इनके पति या इनकी पार्टी इनको नीति/रणनीति बनाने में उतनी ही तवज्जो और भागीदारी देंगे?

मेरा मानना है कि राजनीती में महिलाओं के लिए बहुत जगह है लेकिन कोई इनको आगे नहीं आने देना चाहता। ऐसे में इनको आरक्षण देना ज़रूरी है वरना अगले 100  साल में भी उतनी महिलाएं चुनाव ना जीत पाएं जितनी आरक्षण के बाद जीत रही हैं. लेकिन अकेला आरक्षण कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पा रहा.. अरे किसी नेता की पत्नी अगर चुनाव लड़ भी ली तो क्या हुआ? बात तो तब है जब वो राजनीती में आगे बढे और एक्टिव रहे
और सबसे बड़ी बात जब आम महिला या छोटे छोटे कार्यकर्ता स्तर की महिलाएं राजनीती में आगे आएँगी तब राजनीती में महिलाएं मज़बूत होंगी

सोचकर देखिये क्या नेता की पत्नी या बेटियां तो हमारी राजनीती में सालों से लेकिन इनके होने से राजनीती में क्या कुछ बदला? बदलाव तब होता है आम जान की भागीदारी होती

(नोट : ये मेरा अनुभव है जो गलत भी हो सकता है। आलोचना/सुझाव/संशोधन  आमंत्रित हैं )

Sunday, 1 January 2017

नोटबंदी का हिसाब मिलना अभी बाकी है


दोस्तों बीते 2 महीने भारत के हर आम आदमी ने तपस्या की
या पीएम मोदी के शब्दों में कहें तो शुद्धि यज्ञ किया
घंटों/दिनों लाइन में लगकर बैंक से अपना ही पैसा निकाला और ऐसा महसूस किया जैसे कोई इनाम जीता हो
बहुत तक़लीफ़ उठाई, बहुत से लोगों ने अपनी जान गँवाई
मैं खुद नोटबंदी को एक योजना के तौर पर समर्थन देता हूँ और मानता हूँ कि नोटबंदी में दिक्कतें तो होनी थी और हुई
एक रिपोर्टर के तौर पर रिपोर्ट किया कि आम लोग इस योजना के पक्ष में हैं
लेकिन इसको जिस तरह लागू किया गया उससे बेहद नाराज़ और परेशान हैं
हालाँकि आखिरी के 20-25 दिन में लोग कहने लगे थे कि इससे कुछ फायदा तो हो नहीं रहा क्योंकि

1. काले धन वाले लोग अपने 500-1000 के नोट कमीशन देकर बदलवा रहे हैं

2. 35% से शुरू हुआ कमीशन आखिरी में 5% तक आ गया जिसमें हाथों हाथ नोट बदलने की खबरें आई

3. ऊपर से सरकार ने काला धन वालों के लिए 50% पर एक तरह माफ़ी योजना भी निकाल दी

4. आम लोग ही लाइन में लगे रहे और नोट-नोट को संघर्ष करते रहे जबकि बाज़ार में 2 हज़ार के नोट की गड्डियां खूब घूमती रही लेकिन सिर्फ ख़ास लोगों के लिए

5. अलग अलग बैंक पर छापा मारने पर इस बात की तस्दीक हुई कि कालाधन कैसे सफ़ेद धन बनाया जा रहा था

खैर अब नोटबंदी का दौर ख़त्म हो चुका है और इस दौरान देश की आम जनता ने बेहद धैर्य के साथ इस दौर को जिया/झेला । इसके लिए हम सभी बधाई के पात्र है। हम सबको को बहुत बहुत बधाई।

लेकिन अब समय है ये जानने का कि नोटबंदी नाम की इस तपस्या या शुध्दि यज्ञ से हमने हासिल क्या किया। क्या क्या सवाल है जिनके जवाब मिलने से हम पता लगाएंगे कि हमारी तपस्या कितनी कामयाब रही

1. नोटबंदी के बाद कितना कालाधन का पता चला

2. कितनी रकम के 500-1000 के नोट बैंकों के पास आये। याद रहे ₹15.44 लाख करोड़ के 500-1000 के नोट 8 नवम्बर को चलन में थे

3. आधी रकम देकर काले को सफ़ेद करने की सरकारी योजना में कितने कालेधन वाले कितना काला धन लाये

4. बैंक या अन्य पर छापा मारकर कुल कितने की रकम पकड़ी गई। इससे हमको पता चलेगा कि कालेधन वालों ने कितनी भी बचने की कोशिश करी लेकिन वो बच नहीं पाए। लोगों का व्यवस्था और कानून में भरोसा बढ़ेगा

5. अब जब नोटबंदी ख़त्म हो गई है तो फिर अपने बैंक खाते से अपना पैसा निकालने पर पाबंदी क्यों बरकरार है?

6. बेशक ATM से अब आप 2500 की बजाय रोज़ 4500 निकाल पाएंगे। लेकिन पाबंदी तो अब भी है।

7. ATM से पैसा निकालने की लिमिट बढ़ाई है लेकिन ATM में आजकल पैसा मिलता कहाँ है? ज़्यादातर ATM तो पोस्टऑफिस जैसे लगते हैं आजकल

ये सवाल मेरे मन में ना उठते अगर साल के आखिरी दिन की शाम को पीएम मोदी ने इसपर बोला होता। मुझे लगा था कि शायद मोदी जी नोटबंदी पर बोलेंगे लेकिन उन्होंने नई योजनाएं अपने एजेंडा पर रखी। मुझे ऐसी उम्मीद इसलिये भी थी क्योंकि सरकार कवर करने वाले पत्रकार ऐसा कह रहे थे कि पीएम नोटबंदी का रिपोर्ट कार्ड देंगे। लेकिन भाषण सुनकर लगा जैसे बजट भाषण का सबसे अहम हिस्सा पीएम ने समय से पहले घोषित कर दिया हो

खैर कोई बात नहीं क्या बोलना है क्या नहीं ये उनका अधिकार है ठीक वैसे ही जैसे सवाल पूछना हमारा अधिकार है।

आज से नया साल शुरू हो रहा है
बीती बातें माफ़ करें,अपने दिल को साफ़ करें
छोटी सी इस ज़िन्दगी में क्रोध,ईर्ष्या, द्वेष को त्याग सबसे प्रेम करें क्योंकि प्रेम का मार्ग ही परमात्मा तक ले जाता है
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

Saturday, 17 December 2016

हम करें संघर्ष, उनको मिले संरक्षण?


कितने कमाल की बात है कि केंद्र सरकार कह रही है कि पोलिटिकल पार्टियां नोटबंदी के दायरे में नहीं आती।
ना ही बैंक में 500/1000 के नोट बैंक में जमा करने में उनको कोई हिसाब नहीं देना, ना टैक्स देना और ना ही कोई जुर्माना

मैं कहता हूँ ........

1. पोलिटिकल पार्टियां क्या स्वयं भगवान द्वारा बनाई गई संस्थाएं हैं जो उनपर आम जनता वाला कानून लागू नहीं होता?

2. जब देश के लोग काले धन की समाप्ति के लिए नोटबंदी झेल/स्वीकार सकते हैं तो फिर पोलिटिकल पार्टियां क्यों नहीं? और क्यों केंद्र सरकार उनको मिलने वाली छूट जारी रखे हुए है?

3. नोटबंदी का साफ़ और सीधा मतलब है 500/1000 के पुराने नोट बंद। इसके या उसके लिए नहीं हर भारतवासी के लिए। तो क्या पोलिटिकल पार्टियां भारतीय नहीं?

4.देश के आम लोग कालेधन समाप्ति के लिये नोटबंदी में संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पोलिटिकल पार्टियों को कानून की आड़ में संरक्षण दिया जा रहा है?

हालाँकि सरकार एक कानून का हवाला दे रही जिसके तहत पोलिटिकल पार्टियों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स में नहीं आता। कानूनन पोलिटिकल पार्टियों को छूट है कि ......

1. कितना भी चंदा नगद में ले सकते हैं
2. बीस हज़ार तक मिला चन्दा किसने दिया उसका स्रोत बताने की कोई ज़रूरत नहीं।
3. बीस हज़ार से ऊपर का चंदा किसने दिया उसका नाम चुनाव आयोग को बताना होता है लेकिन टैक्स नाम की चीज़ कहीं नहीं इनके लिए

अब क्योंकि पोलिटिकल पार्टियों को 20 हज़ार तक के चंदे देने वाले का नाम किसी को बताने की ज़रूरत नहीं इसलिये पोलिटिकल पार्टियों का करीब 80 फीसदी चंदा 20 हज़ार के नीचे के सेगमेंट में ही दिखता है। अब ये चंदा कौन दे रहा है और कौन नहीं कुछ पता ही नहीं

ये आम धारणा है कि काला धन इसी तरह से पोलिटिकल पार्टियों के खाते में आता है और सालों से पर बहस चल रही है कि पोलिटिकल फंडिंग कानून में सुधार किया जाए लेकिन हुआ आज तक कुछ नहीं।

एक न्यूज़ चैनल के संपादक ने एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से जब पोलिटिकल फंडिंग पर सवाल पूछा

'संपादक: क्यों ना पोलिटिकल पार्टियां अपना चंदा कैश ना लेकर चेक से या डिजिटल तरीके से लें और अपने पूरे चंदे का स्रोत बताये

पीयूष गोयल: अच्छा सुझाव है। जिसपर आम राय बननी चाहिए

संपादक: नोटबंदी पर कौन सी आम राय थी...आपने लागू की, ये भी कानून बना दीजिये.....

पीयूष: (यहाँ मंत्री जी शब्द के शब्द नहीं सार याद है....कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया)'

मेरा बस एक ही सवाल है.....

जब तक देश की राजनीती में काले धन की संभावना होगी तब तक हम अपने सिस्टम को कितना ईमानदार और स्वच्छ कह पाएंगे? ज़रा सोचकर देखें कि अगर कालेधन का प्रयोग करके कोई नेता या पार्टियां हमपर शासन करेंगी तो वो कैसे ईमानदार, निष्पक्ष और साफ़ सुथरी गवर्नेंस हमको दे पाएंगी? बुराई केवल बुराई को बढ़ावा देती है अच्छाई को नहीं।

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी का एक महीना

नोटबंदी को अब एक महीना हो गया है
इस एक महीने का सार या लब्बोलुआब मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है
अब मैं बेहद कंजूस हो चुका हूँ
100 के 4 नोट जेब से निकालने पर ऐसा लगता है मानो मैं 4,000 रुपये खर्च कर रहा हूँ
₹2000 का नोट देखकर माथे में बल पड़ जाते हैं
एक तो उसकी क्वालिटी इतनी हल्की लगती है
ऊपर से मन में आता है कि इसके छुट्टे कहाँ होंगे?
₹100 का नोट अब सबसे शानदार और जानदार लगता है
गांव से लेकर शहर, दिल्ली, यूपी, हरियाणा सबमें अब समानता सी आ गई है कहीं भी ATM में पैसा नहीं मिलता
पहले जब मेरे पास थोड़ा फुर्सत का समय या छुट्टी का दिन होता था तो मैं परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता था या दोस्तों से फ़ोन पर बात करता था और कभी कभी मिल भी लेता था
लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है सोचता हूँ 'यार क्यों ना बैंक या ATM से पैसे निकालने की कोशिश करूँ?'
आज भी ढेर सारे बैंक और ATM पर लंबी लंबी कतारें हैं
जब अपने बैंक की शाखा पर पैसे निकालने पहुंचा तो भीड़ नहीं थी😊
लेकिन जब अंदर घुसा तो बैंक मैनेजर ने बताया कि पैसा भी नहीं है, आज पैसा आएगा लेकिन किस टाइम पता नहीं😢
कुल मिलाकर बात ये है कि अब हम सबका ध्यान बस पैसों में ही लगा रहता है
पहले बैंक से घंटों/दिनों लाइनों में लगकर पैसा निकालने की जद्दोजहद
उसके बाद ये रोना कि जितने हमने मांगे थे बैंक ने उतने नहीं दिए
फिर उन थोड़े बहुत पैसों को खर्च करते समय दिल पर पड़ता बोझ
फिर थोड़े से पैसे झट से ख़त्म होने पर फिर वही कतार में लगने की पीड़ा।
ऊपर से दिल जलाने वाली खबर ये कि काले धन वाला या कोई बड़ा आदमी तो इन कतारों में हमारे साथ दिख नहीं रहा बल्कि कमीशन देकर अपने ब्लैक को व्हाइट कर रहा है
500-1000 ले नोट जमकर ₹2000 के नोटों में बदल रहे हैं
खैर कोई बात नहीं थोड़े दिन बीत गए हैं,थोड़े और बीत जाएंगे
डर बस ये है कि हमने तो खूब धैर्य धर लिया, मुश्किल समय काटने की जी भरके कोशिश करी
लेकिन क्या जिस काले धन की समाप्ति का सपना हमने नोटबंदी में देखा वो पूरा हो पाएगा?
एक महीना हो चुका है, 22 दिन अभी बाकी हैं...

Monday, 5 December 2016

नोटबंदी पर कुछ सवाल

मैं नोटबंदी का समर्थक हूँ
क्योंकि देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मानता हूँ कि काला धन नाम की दीमक को ख़त्म करने का ये अच्छा उपाय हो सकता है
8 नवम्बर की रात जब पीएम मोदी ने ऐलान किया तो मैंने इसको सकारात्मक रूप से लिया
एक रिपोर्टर के नाते इससे लोगों को हो रही परेशानियां कवर की
सरकार के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त को सामने लाने का  धर्म भी निभाया
तमाम परेशानियों के बीच जितने लोगों से मैं मिला ज़्यादातर बोले कि मोदीजी का निर्णय तो अच्छा है लेकिन ये बैंक वाले गड़बड़ कर रहे हैं और हमको पैसा नहीं दे रहे बस अपने ख़ास लोगों को पैसा बाँट दे रहे हैं
लेकिन अब 4 हफ़्ते की नोटबंदी के बाद आम लोगों और मेरे मन कुछ सवाल उठ रहे है

सवाल

सवाल ये है कि जब RBI के निर्देश के मुताबिक आम लोग अधिकतम ₹24,000 और व्यापारी लोग ₹50,000  हर हफ़्ते ही बैंक से कैश निकाल सकते हैं(वैसे तो इतने भी नहीं मिल रहे ज़्यादातर को)

तो फिर ये ₹2,000 के नोट की गड्डियां (₹2,000×100 नोट मूल्य 2 लाख)कैसे घूम रही हैं मार्किट में जिनको कमीशन पे बेचा और खरीदा जा रहा है।

ध्यान दीजिए कि RBI के निर्देश के मुताबिक वो देश का सबसे बड़ा उद्योगपति क्यों ना हो उसको निजी तौर पर केवल 24,000 रुपए यानी 2,000 के 12 नोट प्रति हफ़्ते और अपनी फर्म/कंपनी के नाम पर 50,000 रुपये यानी 2,000 के 25 नोट प्रति हफ़्ते ही मिल सकते हैं तो ये 100 नोट की 2,000 रुपये की गड्डी जिसका मूल्य 2 लाख रुपये है वो बैंक के अलावा किसी के पास कैसे हो सकती है?

और पुराने 500 और 1000 के नोट के बदले ये कमीशन पर खूब सप्लाई की जा रही हैं।

क्या ये RBI और सरकार के सिस्टम को कटघरे में खड़ा नहीं करता?

क्या इससे नोटबंदी की योजना निरर्थक नहीं हो रही?

क्या आम लोगों का वो संघर्ष बेकार जाता नहीं दिख रहा जो उन्होंने घंटों/दिनों बैंकों/ATM के आगे लाइन में लगकर किया?

क्या इससे ये सन्देश नहीं जाता कि काला धन वाले अपने पैसे के दम पर सरकार को मुंह चिढ़ा रहे हैं और आम लोग खुद के साथ धोखा हुआ महसूस कर रहे हैं?

मेरी बात पर यकीन ना हो तो मेरे आगे बताये अनुभव के आधार पर खुद सोचियेगा। 8 नवम्बर की रात से कालाधन वाले दहशत में थे और आम लोग खुश थे लेकिन आज आप किसी भी काला धन वाले से बात कीजिये वो सब खुश हैं क्योंकि नोट बदल गए होंगे और किसी भी आम आदमी से बात कीजिये वो परेशान होगा क्योंकि उसकी मेहनत की कमाई बैंक से निकल नहीं पा रही

देश के आम लोग कह रहे हैं 'योजना तो ये अच्छी है लेकिन ठीक से लागू नहीं हो रही' और मैं कहता हूँ 'योजना तो सरकार की ज़्यादातर अच्छी ही होती है लेकिन ठीक से लागू भी तो होनी चाहिए, अगर ठीक से लागू ही नहीं हुई तो उस योजना का फायदा क्या हुआ?'

Tuesday, 22 November 2016

ये शादी कैसे होगी!

आज दिल्ली से कुछ दूर बुलंदशहर ज़िले के गुलावठी कसबे में बैंक ऑफ़ बड़ोदा की ब्रांच में गया। वहां मुकेश नाम की महिला मिली जो अपनी बेटी की शादी के लिए बैंक से 2 लाख रूपये निकालने के लिए बैंक मैनेजर से संघर्ष कर रही थी। लेकिन बैंक मैनेजर बोल रही थी कि जिस किसी को आपने पैसे देने है उसका अकाउंट नंबर ले आइये हम ट्रांसफर कर देंगे लेकिन आपको नगद पैसा नहीं दे सकते

मुकेश ने बताया कि वो आउट उनका पूरा परिवार गुलावठी में मज़दूरी करता है और तिनका तिनका जोड़कर बेटी की शादी के लिए पैसे बैंक में जमा किये थे। बोली कि इतने दिनों से टीवी पे देख रही हूँ कि शादी वालों को ढाई लाख रुपये दिए जाएंगे लेकिन मैं तो रोज़ आ रही हूँ 2 लाख रुपये निकालने और ये लोग केवल 2,000 रुपये पकड़ा देते हैं बस। कह रहे हैं कि उन लोगों का बैंक अकाउंट लाओ उन लोगों का जिनको आपने पैसे देने है। अब वो अपने अकाउंट नंबर देने को तैयार नहीं हैं तो कहाँ से लाएं?

मैंने बैंक मैनेजर से पूछा कि अब तो रिज़र्व बैंक का नोटिफिकेशन भी आ गया है अब शादी वालों को पैसा क्यों नहीं दे रहे तो उन्होंने बताया कि नोटिफिकेशन तो आ गया है लेकिन हमारे सिस्टम में अपग्रेड नहीं हुआ इसलिये 24,000 रुपये जो नार्मल लिमिट उससे ज़्यादा हम नहीं दे सकते । साथ में बात ये भी है कि हमारे पास पैसा है ही नहीं देने के लिए। रोज़ाना करीब 5-8 लाख रुपये आते हैं अगर ये शादी वालों को 2.5 लाख रुपये के हिसाब से देने लगे तो सैकड़ों लोग खाली रह जाएंगे।

शादी वाले लोग इतने परेशान कि कोई मीडिया वाला एक बार उनको दिख जाए तो अपना दर्द बताकर बिलकुल ये उम्मीद करते हैं कि जैसे हम अभी उनकी समस्या का अंत कर देंगे बैंक से पैसे दिलवाकर। किसी की बेटी की शादी किसी के बेटे की शादी। शादी के लिए पैसा निकालने आये लोगों ने रिज़र्व की इस शर्त को अव्यवहारिक बताया जिसमे कहा गया है कि खाते से पैसा निकालने वाले को उन लोगों की डिटेल देनी होगी जिनको भुगतान होना है साथ ही उनसे ये लिखवाकर लाना होगा कि उनके पास बैंक खाता नहीं

राकेश कुमार के बेटे की शादी है। राकेश ने कहा कि भाईसाहब ऐसे कौन लिखकर दे रहा है और क्यों लिखकर देगा? किसीको क्या ज़रूरत पड़ी है ये लिखकर देने की?।
अपने बेटे की शादी के लिए 60,000 रुपये निकालने आई कुसुम ने बताया कि किस किस की जानकारी बैंक को दें शादी में इतने काम और इतने खर्च होते हैं।

इलाके के और भी बैंकों में गया तो पता चला कि अभी तो कहीं भी इस 2.5 लाख रुपये वाले ऐलान का पालन नहीं हो पाया है। कहीं सिस्टम अपग्रेड नहीं हुआ तो कहीं कहीं पैसा नहीं। जहाँ सिस्टम अपग्रेड हो गया और पैसा भी है वहां पैसा निकालने आये लोगों को बता दिया गया कि आप इन सब दस्तावेज को लेकर आएं तभी पैसा मिलेगा। लोग वापस लौट गए। जिस समय में लोगों को शादी की तैयारी करनी चाहिए उस समय में लोग पैसा निकालने की इस कागज़ी कार्रवाई में फंसे हुए हैं

कुछ बैंकों के अधिकारियों से मिला तो वो खुद रिज़र्व की पैसा निकालने के लिए  रखी इस शर्त पर हंस रहे थे और मुझसे पूछ रहे थे आपको क्या लगता है लोग ये दस्तावेज ला पाएंगे? इससे बड़ी बात बैंक के मैनेजर को खुद लोगों के इन दस्तावेजों या यूँ कहें सुबूतों को वेरीफाई करना होगा और ये बैंक मैनेजर की ज़िम्मेदारी होगी कि जिसको पैसा दिया गया वो वाकई इसका हक़दार था

ये बिलकुल ऐसा है जैसे लोग अपने खुद के बैंक अकाउंट से पैसा नहीं निकाल रहे हों बल्कि बैंक से लोन ले रहे हों।  हालाँकि आजकल तो लोन ज़्यादा आसानी से मिल जाता है नहीं मिल रहा तो बस अपने अकाउंट से नगद। ऐसे में मेरे मन में सवाल बना हुआ है कि बिना पैसे ये शादी कैसे होगी?

मैं गुलावठी के टेंट वालो, बैंड वालों, हलवाई और फूल वालों से मिला। एक आध को छोड़ सबके पास बैंक अकाउंट है। सबने कहा कि हम तो पैसा कैश लेते हैं चेक के चक्कर में कौन पड़े। चेक ले लो फिर बैंक के चक्कर लगाते रहो और वैसे भी हमको पैसा अपने कर्मचारी और मज़दूरों को देना होता है वो भी कैश लेते हैं चेक नहीं। और चलो मान लो हमने आज चेक ले लिया और उसके अकाउंट में पैसे ना निकले तो हम तो फँस जाएंगे ना?

असल में बात ये है कि शादी में काला धन लगता है इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन हर कोई शादी में काला धन ही लगाता है ये बात गलत है। ज़्यादातर लोग ऐसे ही होंगे जो जीवन भर तिनका तिनका जोड़कर अपनी मेहनत की कमाई से अपने बच्चों की शादी के लिए रकम जोड़ता है। अब अगर कैश से दूरी बनाने के लिए पहले से कोई व्यवस्था होती तो शायद इस बारे में सोचते लेकिन अचानक शादी के समय ही ये कह दिया जाए की कैश नहीं चेक से करो तो फिर ये शादी कैसे होगी? आखिर सदियों से चली आ रही परंपरा या चलन रातों रात या एक फैसले से चुटकी बजाकर नहीं बदला करते।