आज दिल्ली से कुछ दूर बुलंदशहर ज़िले के गुलावठी कसबे में बैंक ऑफ़ बड़ोदा की ब्रांच में गया। वहां मुकेश नाम की महिला मिली जो अपनी बेटी की शादी के लिए बैंक से 2 लाख रूपये निकालने के लिए बैंक मैनेजर से संघर्ष कर रही थी। लेकिन बैंक मैनेजर बोल रही थी कि जिस किसी को आपने पैसे देने है उसका अकाउंट नंबर ले आइये हम ट्रांसफर कर देंगे लेकिन आपको नगद पैसा नहीं दे सकते
मुकेश ने बताया कि वो आउट उनका पूरा परिवार गुलावठी में मज़दूरी करता है और तिनका तिनका जोड़कर बेटी की शादी के लिए पैसे बैंक में जमा किये थे। बोली कि इतने दिनों से टीवी पे देख रही हूँ कि शादी वालों को ढाई लाख रुपये दिए जाएंगे लेकिन मैं तो रोज़ आ रही हूँ 2 लाख रुपये निकालने और ये लोग केवल 2,000 रुपये पकड़ा देते हैं बस। कह रहे हैं कि उन लोगों का बैंक अकाउंट लाओ उन लोगों का जिनको आपने पैसे देने है। अब वो अपने अकाउंट नंबर देने को तैयार नहीं हैं तो कहाँ से लाएं?
मैंने बैंक मैनेजर से पूछा कि अब तो रिज़र्व बैंक का नोटिफिकेशन भी आ गया है अब शादी वालों को पैसा क्यों नहीं दे रहे तो उन्होंने बताया कि नोटिफिकेशन तो आ गया है लेकिन हमारे सिस्टम में अपग्रेड नहीं हुआ इसलिये 24,000 रुपये जो नार्मल लिमिट उससे ज़्यादा हम नहीं दे सकते । साथ में बात ये भी है कि हमारे पास पैसा है ही नहीं देने के लिए। रोज़ाना करीब 5-8 लाख रुपये आते हैं अगर ये शादी वालों को 2.5 लाख रुपये के हिसाब से देने लगे तो सैकड़ों लोग खाली रह जाएंगे।
शादी वाले लोग इतने परेशान कि कोई मीडिया वाला एक बार उनको दिख जाए तो अपना दर्द बताकर बिलकुल ये उम्मीद करते हैं कि जैसे हम अभी उनकी समस्या का अंत कर देंगे बैंक से पैसे दिलवाकर। किसी की बेटी की शादी किसी के बेटे की शादी। शादी के लिए पैसा निकालने आये लोगों ने रिज़र्व की इस शर्त को अव्यवहारिक बताया जिसमे कहा गया है कि खाते से पैसा निकालने वाले को उन लोगों की डिटेल देनी होगी जिनको भुगतान होना है साथ ही उनसे ये लिखवाकर लाना होगा कि उनके पास बैंक खाता नहीं
राकेश कुमार के बेटे की शादी है। राकेश ने कहा कि भाईसाहब ऐसे कौन लिखकर दे रहा है और क्यों लिखकर देगा? किसीको क्या ज़रूरत पड़ी है ये लिखकर देने की?।
अपने बेटे की शादी के लिए 60,000 रुपये निकालने आई कुसुम ने बताया कि किस किस की जानकारी बैंक को दें शादी में इतने काम और इतने खर्च होते हैं।
इलाके के और भी बैंकों में गया तो पता चला कि अभी तो कहीं भी इस 2.5 लाख रुपये वाले ऐलान का पालन नहीं हो पाया है। कहीं सिस्टम अपग्रेड नहीं हुआ तो कहीं कहीं पैसा नहीं। जहाँ सिस्टम अपग्रेड हो गया और पैसा भी है वहां पैसा निकालने आये लोगों को बता दिया गया कि आप इन सब दस्तावेज को लेकर आएं तभी पैसा मिलेगा। लोग वापस लौट गए। जिस समय में लोगों को शादी की तैयारी करनी चाहिए उस समय में लोग पैसा निकालने की इस कागज़ी कार्रवाई में फंसे हुए हैं
कुछ बैंकों के अधिकारियों से मिला तो वो खुद रिज़र्व की पैसा निकालने के लिए रखी इस शर्त पर हंस रहे थे और मुझसे पूछ रहे थे आपको क्या लगता है लोग ये दस्तावेज ला पाएंगे? इससे बड़ी बात बैंक के मैनेजर को खुद लोगों के इन दस्तावेजों या यूँ कहें सुबूतों को वेरीफाई करना होगा और ये बैंक मैनेजर की ज़िम्मेदारी होगी कि जिसको पैसा दिया गया वो वाकई इसका हक़दार था
ये बिलकुल ऐसा है जैसे लोग अपने खुद के बैंक अकाउंट से पैसा नहीं निकाल रहे हों बल्कि बैंक से लोन ले रहे हों। हालाँकि आजकल तो लोन ज़्यादा आसानी से मिल जाता है नहीं मिल रहा तो बस अपने अकाउंट से नगद। ऐसे में मेरे मन में सवाल बना हुआ है कि बिना पैसे ये शादी कैसे होगी?
मैं गुलावठी के टेंट वालो, बैंड वालों, हलवाई और फूल वालों से मिला। एक आध को छोड़ सबके पास बैंक अकाउंट है। सबने कहा कि हम तो पैसा कैश लेते हैं चेक के चक्कर में कौन पड़े। चेक ले लो फिर बैंक के चक्कर लगाते रहो और वैसे भी हमको पैसा अपने कर्मचारी और मज़दूरों को देना होता है वो भी कैश लेते हैं चेक नहीं। और चलो मान लो हमने आज चेक ले लिया और उसके अकाउंट में पैसे ना निकले तो हम तो फँस जाएंगे ना?
असल में बात ये है कि शादी में काला धन लगता है इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन हर कोई शादी में काला धन ही लगाता है ये बात गलत है। ज़्यादातर लोग ऐसे ही होंगे जो जीवन भर तिनका तिनका जोड़कर अपनी मेहनत की कमाई से अपने बच्चों की शादी के लिए रकम जोड़ता है। अब अगर कैश से दूरी बनाने के लिए पहले से कोई व्यवस्था होती तो शायद इस बारे में सोचते लेकिन अचानक शादी के समय ही ये कह दिया जाए की कैश नहीं चेक से करो तो फिर ये शादी कैसे होगी? आखिर सदियों से चली आ रही परंपरा या चलन रातों रात या एक फैसले से चुटकी बजाकर नहीं बदला करते।
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