Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Sunday, 30 October 2016

दीपावली का पर्व और महत्त्व


दिवाली या दीपावली हम क्यों मनाते हैं? इसका महत्व क्या है?
इस बारे में हम कुछ जानते हैं, कुछ नहीं जानते या कुछ भ्रांतियां हैं
आज के इस मौके पर सोचा आपसे अपना यही ज्ञान साझा करूँ
आज से करीब 8,000 बरस पूर्व प्रभु श्री राम रावण का वध करके
माता सीता को उसके बंधन से छुड़ाकर अयोध्या लौटे थे
तो जब वो लौटे थे तो वो रात थी अमावस्या
जिसमें घना अँधेरा छाया हुआ था
साथ ही खुशी का मौका... कि इतने लंबे सालों के बाद
राजा रामचंद्र जी माता सीता संग घर लौटे तो इसलिये अयोध्या वासियों ने दिए जलाकर प्रकाश किया स्वागत किया और खुशियां मनाई
तो हम उस पावन दिन की याद में हम आज भी दीये जलाकर प्रकाश फैलाकर खुशियां मनाते हैं
प्रभु श्री राम इतने बरस से अयोध्या में नहीं थे जिसके चलते अयोध्या वासियों की स्थिति काफी खराब हो गई थी साथ ही सीता माता जो कि साक्षात् लक्ष्मी स्वरूपा थी
वो अपने घर आई थी
तो सीता माता के सम्मान और अयोध्या वासियों पर देवी लक्ष्मी की कृपा हो इसलिये प्रभु श्री राम ने उस दिन समस्त अयोध्या वासियों के लिए आदिशक्ति के महालक्ष्मी स्वरुप का पूजन किया था
इसलिये हम आज के दिन देवी महालक्ष्मी की पूजा करते हैं
ध्यान रखें जब हम लक्ष्मी की बात करते हैं तो लक्ष्मी का अर्थ 'पैसा या धन' नहीं होता
लक्ष्मी का असल अर्थ होता शांति, समृद्धि, संतुष्टि
यही इस संसार का सबसे बड़ा धन या संपत्ति है
जिसके पास ये हैं उसको पैसे की टेंशन क्या?
और जिसके पास ये नहीं उसके पास कितना भी पैसा हो क्या फ़र्क़ पड़ता है?
हमें याद रखना चाहिए कि ये पैसा नाम की वस्तु
इंसान ने बनाई है भगवान ने नहीं
इसलिये बस ईश्वर की भक्ति करें उसके अलावा संसार में भक्ति लायक कुछ है नहीं
आप भगवान पर ध्यान दीजिए, भगवान आप पर ध्यान देंगे
दीपावली की शुभ और मंगल कामनाएं

Thursday, 20 October 2016

हरिद्वार में घमंड और अभद्रता के दर्शन

आज हरिद्वार में गंगा मैया के दर्शन करके लौट रहा था
साथ में पिता जी और मेरी पत्नी थी
अचानक पिताजी ने बोला 'ज़रा टॉयलेट देख ज़रा आसपास'
हर की पौड़ी के पास मैंने मेला भवन देखा
क्योंकि मैं खुद यहाँ एक बार पहले भी टॉयलेट इस्तेमाल कर चुका था
इसलिये मैंने बोला यहाँ पर है आओ
यहाँ बताना जरूरी है कि पिताजी सालों से डियाबाटीज़ के मरीज़ है
और ये बताने की ज़रूरत नहीं कि इस रोग में आपको जल्दी जल्दी शौचालय जाने की मजबूरी होती है
हम मेला भवन प्रांगण में गए तो पिताजी ने वहां एक सुरक्षाकर्मी से पूछा 'भाई टॉयलेट कहाँ को है?'
उसने बाहर कहीं इशारा करके कहा वहां है वहां जाओ
ये देख मैंने कहा अरे भाई मेला भवन में टॉयलेट है तो सही ....वहां जाने दो ना....
उसने कहा मैं आपको अंदर नहीं जाने दे सकता
मैंने पूछा क्यों भाई अंदर क्यों नहीं जाने दे सकते?
इसपर वो ज़ोर ज़ोर से हमारे ऊपर धमकाने वाले अंदाज़ में हमें वहां से भगाने की कोशिश करने लगा
इस बीच मुझे दिल्ली के हाई सिक्योरिटी इलाके जैसे गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, कृषि भवन की याद आई
यहाँ हम मौजूद सुरक्षाकर्मी से निवेदन करके टॉयलेट होकर ईमानदारी से बाहर आते हैं कभी कोई 'ना' नहीं कहता
अरे भाई मानवीय आधार पर सब एक दूसरे की मदद करते हैं...खैर...
इसी बीच वो सुरक्षाकर्मी हमसे झगड़ने लग गया
और बोला 'मैं यहाँ चूतिया नहीं बैठा जो आपको अंदर जाने दूंगा'
ये सुनकर मैंने उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखकर कहा
भाई 'तमीज से बात करो मैं आपसे आप करके बात कर रहा हूँ निवेदन कर रहा हूँ और आप बदतमीज़ी कर रहे हैं?
वो बोला 'क्या बदतमीज़ी की मैंने? और ये हाथ हटाकर बात करो'
और इसी बीच वो अपनी बन्दूक को इस तरह झिड़कने लगा जैसे हमपर तान देना चाहता हो लेकिन तान ना पा रहा हो
मुझे लगा कि शायद इसको वर्दी और बन्दूक का घमंड हो गया है इसलिए मैंने उसे फिर प्यार से समझाया कि
'भाई आराम से बात करो तुम भी कहीं काम करते हो कर्मचारी हो मैं भी कहीं काम करता हूँ कर्मचारी हूँ'
ये सुनते ही वो बोला 'ऐसा है मेरा नाम जीतेंद्र सिंह रावत है जा जहाँ मर्ज़ी शिकायत कर दे'
ये सब सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा
और मैं वहां से चल दिया
मैं एक सभ्य और मर्यादित भाषा बोलने वाला व्यक्ति हूँ
इसलिये मुझे उसकी ऐसी भाषा बदतमीज़ी लगी
लेकिन वो जो देवभूमि पर सुरक्षा में लगा है
और ख़ास बात ये है कि वो खुद उत्तराखंड का था
और पिता समान व्यक्ति और एक महिला के सामने ड्यूटी पर ऐसी भाषा बोल रहा था
अरे देवभूमि के लोगों के बारे में मेरे कितने अच्छे विचार थे
उस शख्स से उसको कितनी चोट पहुंचाई
मुझे बुरा इसलिये लग रहा था कि इस देश में आम जनता के साथ कैसा व्यवहार होता है
एक दफ़ा तो वो ये तक बोला कि 'क्या पता आप लोग आतंकवादी हों इसलिये मैं आपको अंदर नहीं जाने दूंगा?'
अरे भाई आप अपनी ड्यूटी कीजिये लेकिन मानवता और सभ्यता मत भूलिए
उस भूमि का तो मान रखिये जिसको पूजनीय कहते है
उस तीर्थ का सम्मान कीजिये जिसको हरिद्वार कहते हैं
गंगा मैया के तट पर इस तरह की अभद्रता इस तरह का घमंड.....ईश्वर आपका कल्याण करे।
(नोट: इस पूरे प्रकरण में मैंने अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं की जिससे बहुत कुछ सीखने को मिला)