Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Thursday, 20 October 2016

हरिद्वार में घमंड और अभद्रता के दर्शन

आज हरिद्वार में गंगा मैया के दर्शन करके लौट रहा था
साथ में पिता जी और मेरी पत्नी थी
अचानक पिताजी ने बोला 'ज़रा टॉयलेट देख ज़रा आसपास'
हर की पौड़ी के पास मैंने मेला भवन देखा
क्योंकि मैं खुद यहाँ एक बार पहले भी टॉयलेट इस्तेमाल कर चुका था
इसलिये मैंने बोला यहाँ पर है आओ
यहाँ बताना जरूरी है कि पिताजी सालों से डियाबाटीज़ के मरीज़ है
और ये बताने की ज़रूरत नहीं कि इस रोग में आपको जल्दी जल्दी शौचालय जाने की मजबूरी होती है
हम मेला भवन प्रांगण में गए तो पिताजी ने वहां एक सुरक्षाकर्मी से पूछा 'भाई टॉयलेट कहाँ को है?'
उसने बाहर कहीं इशारा करके कहा वहां है वहां जाओ
ये देख मैंने कहा अरे भाई मेला भवन में टॉयलेट है तो सही ....वहां जाने दो ना....
उसने कहा मैं आपको अंदर नहीं जाने दे सकता
मैंने पूछा क्यों भाई अंदर क्यों नहीं जाने दे सकते?
इसपर वो ज़ोर ज़ोर से हमारे ऊपर धमकाने वाले अंदाज़ में हमें वहां से भगाने की कोशिश करने लगा
इस बीच मुझे दिल्ली के हाई सिक्योरिटी इलाके जैसे गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, कृषि भवन की याद आई
यहाँ हम मौजूद सुरक्षाकर्मी से निवेदन करके टॉयलेट होकर ईमानदारी से बाहर आते हैं कभी कोई 'ना' नहीं कहता
अरे भाई मानवीय आधार पर सब एक दूसरे की मदद करते हैं...खैर...
इसी बीच वो सुरक्षाकर्मी हमसे झगड़ने लग गया
और बोला 'मैं यहाँ चूतिया नहीं बैठा जो आपको अंदर जाने दूंगा'
ये सुनकर मैंने उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखकर कहा
भाई 'तमीज से बात करो मैं आपसे आप करके बात कर रहा हूँ निवेदन कर रहा हूँ और आप बदतमीज़ी कर रहे हैं?
वो बोला 'क्या बदतमीज़ी की मैंने? और ये हाथ हटाकर बात करो'
और इसी बीच वो अपनी बन्दूक को इस तरह झिड़कने लगा जैसे हमपर तान देना चाहता हो लेकिन तान ना पा रहा हो
मुझे लगा कि शायद इसको वर्दी और बन्दूक का घमंड हो गया है इसलिए मैंने उसे फिर प्यार से समझाया कि
'भाई आराम से बात करो तुम भी कहीं काम करते हो कर्मचारी हो मैं भी कहीं काम करता हूँ कर्मचारी हूँ'
ये सुनते ही वो बोला 'ऐसा है मेरा नाम जीतेंद्र सिंह रावत है जा जहाँ मर्ज़ी शिकायत कर दे'
ये सब सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा
और मैं वहां से चल दिया
मैं एक सभ्य और मर्यादित भाषा बोलने वाला व्यक्ति हूँ
इसलिये मुझे उसकी ऐसी भाषा बदतमीज़ी लगी
लेकिन वो जो देवभूमि पर सुरक्षा में लगा है
और ख़ास बात ये है कि वो खुद उत्तराखंड का था
और पिता समान व्यक्ति और एक महिला के सामने ड्यूटी पर ऐसी भाषा बोल रहा था
अरे देवभूमि के लोगों के बारे में मेरे कितने अच्छे विचार थे
उस शख्स से उसको कितनी चोट पहुंचाई
मुझे बुरा इसलिये लग रहा था कि इस देश में आम जनता के साथ कैसा व्यवहार होता है
एक दफ़ा तो वो ये तक बोला कि 'क्या पता आप लोग आतंकवादी हों इसलिये मैं आपको अंदर नहीं जाने दूंगा?'
अरे भाई आप अपनी ड्यूटी कीजिये लेकिन मानवता और सभ्यता मत भूलिए
उस भूमि का तो मान रखिये जिसको पूजनीय कहते है
उस तीर्थ का सम्मान कीजिये जिसको हरिद्वार कहते हैं
गंगा मैया के तट पर इस तरह की अभद्रता इस तरह का घमंड.....ईश्वर आपका कल्याण करे।
(नोट: इस पूरे प्रकरण में मैंने अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं की जिससे बहुत कुछ सीखने को मिला)

7 comments:

  1. Sir Ji, its common in lot many places...

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  2. ye mansikta ki nisani h bhai

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  3. ye mansikta ki nisani h bhai

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  4. are aap bhi imandari men bah gaye...ek do phone ghumaya hota to sara kam ban gaya hota.

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  5. गंगा "मैया" नहीं है...
    उत्तराखंड "देवभूमि" नहीं है...
    हरिद्वार कोई तीर्थ नहीं है...

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  6. ये अनुभव अक्सर आम आदमियों को होता है इस देश में जिसे हम लोकतांत्रिक कहते है(जो क़ि सिर्फ नाम का लोकतंत्र है क्योंकि यहाँ ना तो लोकभवन की कोई कीमत है और न कोई तंत्र है।)

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  7. उत्तराखण्ड के लोगों के प्रति जो सम्मान की भावना है, आज ठेस लगी. हरीश जी से प्रार्थना है उसे दफ़्तर बुलाकर प्यार से समझाएँ

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