Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Friday, 11 November 2016

नोटबंदी पर अब सब्र टूट रहा है

शुक्रवार सुबह मेरे पास ख़बर आई कि चांदनी चौक इलाके में 
छापेमारी चल रही है। मैं चांदनी चौक के दरीबा इलाके में पहुंचा जहाँ एक दुकान के बाहर कुछ भीड़ लगी थी। मैंने दूकान की तरफ देखा तो वहां करीब 4 पुलिस वाले दूकान के बाहर बैठे हुए थे। दूकान का शटर नीचे से एक हाथ खुला हुआ था। क्या इसी दुकान में इनकम टैक्स की रेड हो रही है? ये बात जानने के लिए मैंने आसपास खड़े ज्वेलर्स और ड्यूटी पर बैठे पुलिस वालों से पूछा तो सबने बता दिया।

अब मैं कुछ देर वहां रूककर अपनी रिपोर्ट के लिए तथ्य जुटाने और माहौल भांपने में लग गया। मुझे माहौल गुरुवार के मुकाबले शुक्रवार को कुछ बदला बदला सा लगा। कल तक व्यापारी पीएम मोदी की नोटबंदी की नीति से परेशान तो हो रहे थे लेकिन ना तो उनसे नाराज़ थे और ना ही आलोचना कर रहे थे लेकिन आज व्यापारी खासे नाराज नज़र आ रहे थे। व्यापारी कह रहे थे 'मोदीजी ने नास करवा दिया हमारा और खुद जाकर जापान में बैठ गए'

लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा मैं टीवी वाला हूँ और मेरे हाथ में माइक और साथ में कैमरा भी है वो चुप हो गए। जैसे ही मैंने पूछा आप क्या यहीं के ज्वेलर हैं? वो घबरा गए और पलक झपकते ही वहां से चले गए। मैंने कुछ और लोगों से बात करी तो ज़्यादातर लोग या तो बचते नज़र आये या एक संतुलित सी बात बोलते नज़र आये

अब बाजार खुलने का समय हो गया था लेकिन एक भी दूकान नहीं खुली थी। मैंने कैमरा पर रिपोर्टिंग शुरू की। वहां खड़े लोगों ने कैमरा पर कहा कि ज़्यादातर ट्रेडर्स ईमानदार हैं केवल 1% की वजह से 99% को परेशान किया जा रहा है जिसके चलते व्यपारी दहशत में हैं और इसीलिए दुकानें सब बंद है

ऑफ कैमरा और ऑन कैमरा के इस अंतर को समझते हुए मैंने अपनी लाइव रिपोर्ट में भी शामिल किया क्योंकि मुझे अब एहसास होने लगा था कि इनकम टैक्स के छापों से अब व्यापारी वर्ग में वो नाराज़गी दिखने लगी है जो कल तक नहीं दिख रही थी। खैर नाराज़गी हो तो भी क्या फ़र्क पड़ता है? जिसने गलत किया होगा वो भुगतेगा ही। ये सोचकर मैं आगे बढ़ गया

दरीबा कलां से अब मैं देश के सबसे बड़े सराफा बाजार कूंचा महाजनी पहुंचा। आयकर के छापों के चलते वे बाजार गुरुवार को बंद हुआ था और अब शुक्रवार को भी बंद ही था । मैं कूंचा महाजनी की गली में घुसा तो दूकान तो सब बंद थी लेकिन लोग वहां इधर से उधर घूमते, बैठे, बातें करते नज़र आ रहे थे।

लेकिन जब मैं उनसे पूछता कि आप क्या के व्यापारी हैं या ज्वैलर हैं तो वो ये कहकर कि 'नहीं हम तो यहाँ आये हुए थे' इधर उधर देखने लगते। लेकिन मैं जानता था कि ये लोग कोई बाहर से आये हुए नहीं  बल्कि यहीं के ट्रेडर,कमीशन एजेंट, कर्मचारी या मज़दूर हैं। मैंने कुछ समय और बिताया तो वहां मौजूद लोग कहने लगे कि 'भाईसाहब शादी का पीक सीजन है इस समय यहाँ इतना काम होता था कि हम दिन में खाना तक नहीं खा पाते थे और ऐसे समय में सरकार ने ये काम कर दिया'

थोड़ा गली में और जाकर माहौल टटोलने की कोशिश की तो एक व्यापारी बोला कि 'भाईसाहब जब हमने एक्साइज ड्यूटी लगाये जाने के विरोध में दो महीने दूकान बंद रखी तब किसी को के ख़याल नहीं आया कि हमारे घर कैसे चल रहे होंगे हम अपने लोगों को तनख्वाह कैसे दे रहे होंगे लेकिन कुछ व्यापारियों ने किलो के भाव महंगा सोना बेच दिया तो सब लग गए हमारे पीछे?'

असल में खबर यही थी कि लोग अपना काला धन दोगुनी कीमत पर सोना खरीदकर एडजस्ट करने में लगे हैं जिसके बाद सराफा कारोबारी और ज्वेलर्स पर छापे पड़े। और छापों की दहशत में सारा बाजार ही बंद हो गया

अब मैं खारी बावली की तरफ बढ़ा जो कि देश की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट और किराना मार्किट है। इसके लिए जब मैं कूंचा महाजनी से ई-रिक्शा में बैठकर जाने लगा तो मेरे कैमरापर्सन ने याद दिलाया हमारे पास देने के लिए खुले पैसे नहीं है लिहाज़ा मैं वहां से पैदल खारी बावली के चल पड़ा

पैदल चलते वक़्त चांदनी चौक के इस पूरे बाजार की तस्वीर देखकर मैं हैरान था। मेरे दोनों तरफ लोगों की लंबी लंबी लाइन एक लाइन चले ही जा रही है ख़त्म ही नहीं हो रही और ख़त्म हुई तो दूसरी शुरू हो गई। क्योंकि चांदनी चौक का इलाका ट्रेड हब है और वहां सारा काम नगद होता है इसलिए वहां कुछ कुछ दूरी पर बैंक और एटीएम हैं। एटीएम में लाइन, बैंकों में लाइन इतनी लंबी लाइन मैंने जीवन में पहली बार देखी थी।

मैं चलता जा रहा था और लाइन भी चलती जा रही थी। ऐसी तस्वीरें मैं फिल्मों में देखी थी जिसमे 70 के दशक में देश का क्या हाल था पता चलता था जिसमे सस्ते राशन के लिए लोग घंटों लंबी लाइन में लगते होंगे। अरे आज के समय में मुफ़्त रिलायंस जियो के सिम कार्ड के लिए छोटी सी लाइन देखकर ही मैं आश्चर्य करने लगा था लेकिन ये लंबी लंबी लाइन और इसमें घंटों से खड़े लोग और गज़ब भीड़ देखकर मैंने इनके धैर्य को सलाम किया कि अचानक एक बैंक एटीएम के बाहर मारपीट दिखने लगी। कोई शख्स लाइन में बीच में घुसकर अपने नंबर से पहले आगे आने की कोशिश में था कि दूसरे किसी शख्स ने उसमे दो रख दिए जवाब में इस शख्स ने भी दो रख दिए। खैर मेरे कैमरा के पहुँचते ही मामला शांत हो गया

चांदनी चौक की ज़्यादातर दुकानें बंद थी। जो खुली भी थी वहां दुकानदार खाली बैठे थे। खाली कैसे नहीं बैठेंगे लोग तो सारे बैंकों और एटीएम पर खड़े थे। हालात इतनी खराब थी कि कुछ दुकानदारों को तो मैं उनके काउंटर के ऊपर या यूँ कहें कि गल्ले के ऊपर बैठकर अपने मोबाइल के फीचर्स का फायदा उठाकर अपना टाइम निकाल रहे थे

अब मैं खारी बावली पहुंचा जहाँ ज़्यादातर दुकानें बंद थी। ऐसा लग रहा था जैसा आज रविवार छुट्टी का दिन है। कुछ दुकानें खुली थी लेकिन ग्राहक का कोई  अता-पता नहीं था। एक दुकानदार से पूछा कि क्यों बंद हैं सब दुकानें तो उन्होंने बताया कि जब लोगों पर पैसा ही नहीं है हमारे पास ग्राहक नहीं तो दूकान खोलकर क्या करेंगे? हम भी बस इसलिये बैठे हैं क्योंकि घर पर जाकर क्या करेंगे? बिना मतलब तनाव होता है

मैंने सोचा कि इन लोगों ने सालों से बाजार में खूब कमाया है और काला धन भी यहाँ के व्यापारियों के पास हो सकता है लेकिन बाजार में मज़दूर और गाडी से माल दिल्ली एनसीआर में सप्लाई करने वाले लोग खाली बैठे दिखे। मनसा राम नाम के मज़दूर ने बताया कि रोज़ाना 200-300 रुपये कमा लेते थे लेकिन अब दो दिन से बोनी भी नहीं हुई जैसे तैसे खाना खा रहे हैं। योगेश नाम के माल सप्लाई करने ने बताया कि घर में 6 लोग हैं, यहाँ से रोज़ाना 600-700 रुपये काम लेता था लेकिन जब ग्राहक ही नहीं आ रहा तो दिन से खाली बैठे हैं। इनके बारे में तो मैं ही नहीं आप भी कह सकते हैं कि इनके पास ना तो काला धन होगा ना ही नोटबंदी की योजना इनपर हमले के लिए बनी होगी लेकिन ये पिस रहे हैं।

अब जब मैं कैमरा पर इसको रिकॉर्ड कर रहा था तो कुछ व्यापारियों ने 'मोदी हाय हाय' के नारे लगाने शुरू कर दिए। मैंने कहा भाईसाहब अभी रुको आपसे बात करूँगा पहले इनसे शान्ति से बात करने दो क्योंकि शोर मचाकर हल्ला करके बात समझ नहीं आती। वो कुछ देर रुके लेकिन जैसे ही मैं कैमरा पर रिपोर्ट ख़त्म करने लगा उन्होंने फिर हल्ला करना शुरू कर दिया और बोलने लगे 'मीडिया बिकी हुई है सबको मोदी ने खरीद लिया है'

मैं इन लोगों से भी ज़रूर बात करने वाला था लेकिन मैं सोच ये वाली रिपोर्ट लंबी हो रही है अगले में इनका गुस्सा कवर करूँगा लेकिन व्यापारी अधीर हो रहे थे। व्यापारी बोलने लगे 'मीडिया को मोदी ने खरीद लिया है', 'कोई सा भी मीडिया एक शब्द मोदी के खिलाफ नहीं दिखा रहा', हम यहाँ मर रहे हैं और मीडिया वाले दिखा रहे हैं कि लोगों में जश्न का माहौल', 'किसी मीडिया ने सरकार के इस कानून का विरोध किया क्या' 

इन लोगों की बात सुनकर मैंने कहा कि आप कर लीजिए विरोध वो बोले आप हमारी बात लोगे ही नहीं। मैं इनके ये विचार लेने कैमरा पर लेने जा रहा था लेकिन मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि ये लोग कौन हैं जिससे पता चले कि किस वर्ग के क्या विचार हैं। मैंने आक्रामक हो रहे एक दो लोगों से पूछा क्या आप व्यापारी हैं आपकी दूकान यहीं है?
वो लोग बोले वाह हम आपको बता दें और उसके बाद हमारी भी ऐसी तैसी कराओगे आप?

ये व्यापारी ही थे लेकिन मैं इनसे बात करता इतने में कुछ दूसरे व्यापारियों ने उनको शांत कराकर मुझे रोका और उनको वहां से चलता कर दिया। मैंने पूछा अरे भाईसाहब बोलने दो न उनको सबके विचार आने चाहिए। वो बोले अरे भाईसाहब ऐसी बातों का कोई फायदा है क्या? कुछ उल्टा सीधा बोल दो और फिर नतीजा भुगतो!

लेकिन मैंने गुस्सा हो रहे व्यापारियों को उनकी दुकानों पर जाकर खोज निकाला और पूछा अब बताओ भाईसाहब क्या कहना चाहते हैं आप?। अब उन व्यापारी भाईसाहब ने अपने तेवर नरम किये और कहा 'भाईसाहब मैं तो केवल इतना कह रहा था कि कुछ लोगों की वजह से सब लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए' ।

कुल मिलाकर ये समझ आया कि कोई व्यापारी पॉइंट आउट नहीं होना चाहता इसलिये आलोचना करता कैमरा पर नहीं दिखता वरना नाराज़गी तो दिखने लगी है। परेशान वो भी है जिसके कुछ गलत किया होगा और परेशान वो भी है जिसने कुछ गलत नहीं किया है। फर्क सिर्फ इतना है कि गलत करने वाला केवल मानसिक तौर पर परेशान है जबकि गलत नहीं करने वाला आज मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर परेशान है।

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