Sharad Sharma, Reporter, NDTV

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Saturday, 17 December 2016

हम करें संघर्ष, उनको मिले संरक्षण?


कितने कमाल की बात है कि केंद्र सरकार कह रही है कि पोलिटिकल पार्टियां नोटबंदी के दायरे में नहीं आती।
ना ही बैंक में 500/1000 के नोट बैंक में जमा करने में उनको कोई हिसाब नहीं देना, ना टैक्स देना और ना ही कोई जुर्माना

मैं कहता हूँ ........

1. पोलिटिकल पार्टियां क्या स्वयं भगवान द्वारा बनाई गई संस्थाएं हैं जो उनपर आम जनता वाला कानून लागू नहीं होता?

2. जब देश के लोग काले धन की समाप्ति के लिए नोटबंदी झेल/स्वीकार सकते हैं तो फिर पोलिटिकल पार्टियां क्यों नहीं? और क्यों केंद्र सरकार उनको मिलने वाली छूट जारी रखे हुए है?

3. नोटबंदी का साफ़ और सीधा मतलब है 500/1000 के पुराने नोट बंद। इसके या उसके लिए नहीं हर भारतवासी के लिए। तो क्या पोलिटिकल पार्टियां भारतीय नहीं?

4.देश के आम लोग कालेधन समाप्ति के लिये नोटबंदी में संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पोलिटिकल पार्टियों को कानून की आड़ में संरक्षण दिया जा रहा है?

हालाँकि सरकार एक कानून का हवाला दे रही जिसके तहत पोलिटिकल पार्टियों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स में नहीं आता। कानूनन पोलिटिकल पार्टियों को छूट है कि ......

1. कितना भी चंदा नगद में ले सकते हैं
2. बीस हज़ार तक मिला चन्दा किसने दिया उसका स्रोत बताने की कोई ज़रूरत नहीं।
3. बीस हज़ार से ऊपर का चंदा किसने दिया उसका नाम चुनाव आयोग को बताना होता है लेकिन टैक्स नाम की चीज़ कहीं नहीं इनके लिए

अब क्योंकि पोलिटिकल पार्टियों को 20 हज़ार तक के चंदे देने वाले का नाम किसी को बताने की ज़रूरत नहीं इसलिये पोलिटिकल पार्टियों का करीब 80 फीसदी चंदा 20 हज़ार के नीचे के सेगमेंट में ही दिखता है। अब ये चंदा कौन दे रहा है और कौन नहीं कुछ पता ही नहीं

ये आम धारणा है कि काला धन इसी तरह से पोलिटिकल पार्टियों के खाते में आता है और सालों से पर बहस चल रही है कि पोलिटिकल फंडिंग कानून में सुधार किया जाए लेकिन हुआ आज तक कुछ नहीं।

एक न्यूज़ चैनल के संपादक ने एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से जब पोलिटिकल फंडिंग पर सवाल पूछा

'संपादक: क्यों ना पोलिटिकल पार्टियां अपना चंदा कैश ना लेकर चेक से या डिजिटल तरीके से लें और अपने पूरे चंदे का स्रोत बताये

पीयूष गोयल: अच्छा सुझाव है। जिसपर आम राय बननी चाहिए

संपादक: नोटबंदी पर कौन सी आम राय थी...आपने लागू की, ये भी कानून बना दीजिये.....

पीयूष: (यहाँ मंत्री जी शब्द के शब्द नहीं सार याद है....कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया)'

मेरा बस एक ही सवाल है.....

जब तक देश की राजनीती में काले धन की संभावना होगी तब तक हम अपने सिस्टम को कितना ईमानदार और स्वच्छ कह पाएंगे? ज़रा सोचकर देखें कि अगर कालेधन का प्रयोग करके कोई नेता या पार्टियां हमपर शासन करेंगी तो वो कैसे ईमानदार, निष्पक्ष और साफ़ सुथरी गवर्नेंस हमको दे पाएंगी? बुराई केवल बुराई को बढ़ावा देती है अच्छाई को नहीं।

Thursday, 8 December 2016

नोटबंदी का एक महीना

नोटबंदी को अब एक महीना हो गया है
इस एक महीने का सार या लब्बोलुआब मेरे हिसाब से कुछ ऐसा है
अब मैं बेहद कंजूस हो चुका हूँ
100 के 4 नोट जेब से निकालने पर ऐसा लगता है मानो मैं 4,000 रुपये खर्च कर रहा हूँ
₹2000 का नोट देखकर माथे में बल पड़ जाते हैं
एक तो उसकी क्वालिटी इतनी हल्की लगती है
ऊपर से मन में आता है कि इसके छुट्टे कहाँ होंगे?
₹100 का नोट अब सबसे शानदार और जानदार लगता है
गांव से लेकर शहर, दिल्ली, यूपी, हरियाणा सबमें अब समानता सी आ गई है कहीं भी ATM में पैसा नहीं मिलता
पहले जब मेरे पास थोड़ा फुर्सत का समय या छुट्टी का दिन होता था तो मैं परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताता था या दोस्तों से फ़ोन पर बात करता था और कभी कभी मिल भी लेता था
लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है सोचता हूँ 'यार क्यों ना बैंक या ATM से पैसे निकालने की कोशिश करूँ?'
आज भी ढेर सारे बैंक और ATM पर लंबी लंबी कतारें हैं
जब अपने बैंक की शाखा पर पैसे निकालने पहुंचा तो भीड़ नहीं थी😊
लेकिन जब अंदर घुसा तो बैंक मैनेजर ने बताया कि पैसा भी नहीं है, आज पैसा आएगा लेकिन किस टाइम पता नहीं😢
कुल मिलाकर बात ये है कि अब हम सबका ध्यान बस पैसों में ही लगा रहता है
पहले बैंक से घंटों/दिनों लाइनों में लगकर पैसा निकालने की जद्दोजहद
उसके बाद ये रोना कि जितने हमने मांगे थे बैंक ने उतने नहीं दिए
फिर उन थोड़े बहुत पैसों को खर्च करते समय दिल पर पड़ता बोझ
फिर थोड़े से पैसे झट से ख़त्म होने पर फिर वही कतार में लगने की पीड़ा।
ऊपर से दिल जलाने वाली खबर ये कि काले धन वाला या कोई बड़ा आदमी तो इन कतारों में हमारे साथ दिख नहीं रहा बल्कि कमीशन देकर अपने ब्लैक को व्हाइट कर रहा है
500-1000 ले नोट जमकर ₹2000 के नोटों में बदल रहे हैं
खैर कोई बात नहीं थोड़े दिन बीत गए हैं,थोड़े और बीत जाएंगे
डर बस ये है कि हमने तो खूब धैर्य धर लिया, मुश्किल समय काटने की जी भरके कोशिश करी
लेकिन क्या जिस काले धन की समाप्ति का सपना हमने नोटबंदी में देखा वो पूरा हो पाएगा?
एक महीना हो चुका है, 22 दिन अभी बाकी हैं...

Monday, 5 December 2016

नोटबंदी पर कुछ सवाल

मैं नोटबंदी का समर्थक हूँ
क्योंकि देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मानता हूँ कि काला धन नाम की दीमक को ख़त्म करने का ये अच्छा उपाय हो सकता है
8 नवम्बर की रात जब पीएम मोदी ने ऐलान किया तो मैंने इसको सकारात्मक रूप से लिया
एक रिपोर्टर के नाते इससे लोगों को हो रही परेशानियां कवर की
सरकार के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त को सामने लाने का  धर्म भी निभाया
तमाम परेशानियों के बीच जितने लोगों से मैं मिला ज़्यादातर बोले कि मोदीजी का निर्णय तो अच्छा है लेकिन ये बैंक वाले गड़बड़ कर रहे हैं और हमको पैसा नहीं दे रहे बस अपने ख़ास लोगों को पैसा बाँट दे रहे हैं
लेकिन अब 4 हफ़्ते की नोटबंदी के बाद आम लोगों और मेरे मन कुछ सवाल उठ रहे है

सवाल

सवाल ये है कि जब RBI के निर्देश के मुताबिक आम लोग अधिकतम ₹24,000 और व्यापारी लोग ₹50,000  हर हफ़्ते ही बैंक से कैश निकाल सकते हैं(वैसे तो इतने भी नहीं मिल रहे ज़्यादातर को)

तो फिर ये ₹2,000 के नोट की गड्डियां (₹2,000×100 नोट मूल्य 2 लाख)कैसे घूम रही हैं मार्किट में जिनको कमीशन पे बेचा और खरीदा जा रहा है।

ध्यान दीजिए कि RBI के निर्देश के मुताबिक वो देश का सबसे बड़ा उद्योगपति क्यों ना हो उसको निजी तौर पर केवल 24,000 रुपए यानी 2,000 के 12 नोट प्रति हफ़्ते और अपनी फर्म/कंपनी के नाम पर 50,000 रुपये यानी 2,000 के 25 नोट प्रति हफ़्ते ही मिल सकते हैं तो ये 100 नोट की 2,000 रुपये की गड्डी जिसका मूल्य 2 लाख रुपये है वो बैंक के अलावा किसी के पास कैसे हो सकती है?

और पुराने 500 और 1000 के नोट के बदले ये कमीशन पर खूब सप्लाई की जा रही हैं।

क्या ये RBI और सरकार के सिस्टम को कटघरे में खड़ा नहीं करता?

क्या इससे नोटबंदी की योजना निरर्थक नहीं हो रही?

क्या आम लोगों का वो संघर्ष बेकार जाता नहीं दिख रहा जो उन्होंने घंटों/दिनों बैंकों/ATM के आगे लाइन में लगकर किया?

क्या इससे ये सन्देश नहीं जाता कि काला धन वाले अपने पैसे के दम पर सरकार को मुंह चिढ़ा रहे हैं और आम लोग खुद के साथ धोखा हुआ महसूस कर रहे हैं?

मेरी बात पर यकीन ना हो तो मेरे आगे बताये अनुभव के आधार पर खुद सोचियेगा। 8 नवम्बर की रात से कालाधन वाले दहशत में थे और आम लोग खुश थे लेकिन आज आप किसी भी काला धन वाले से बात कीजिये वो सब खुश हैं क्योंकि नोट बदल गए होंगे और किसी भी आम आदमी से बात कीजिये वो परेशान होगा क्योंकि उसकी मेहनत की कमाई बैंक से निकल नहीं पा रही

देश के आम लोग कह रहे हैं 'योजना तो ये अच्छी है लेकिन ठीक से लागू नहीं हो रही' और मैं कहता हूँ 'योजना तो सरकार की ज़्यादातर अच्छी ही होती है लेकिन ठीक से लागू भी तो होनी चाहिए, अगर ठीक से लागू ही नहीं हुई तो उस योजना का फायदा क्या हुआ?'

Tuesday, 22 November 2016

ये शादी कैसे होगी!

आज दिल्ली से कुछ दूर बुलंदशहर ज़िले के गुलावठी कसबे में बैंक ऑफ़ बड़ोदा की ब्रांच में गया। वहां मुकेश नाम की महिला मिली जो अपनी बेटी की शादी के लिए बैंक से 2 लाख रूपये निकालने के लिए बैंक मैनेजर से संघर्ष कर रही थी। लेकिन बैंक मैनेजर बोल रही थी कि जिस किसी को आपने पैसे देने है उसका अकाउंट नंबर ले आइये हम ट्रांसफर कर देंगे लेकिन आपको नगद पैसा नहीं दे सकते

मुकेश ने बताया कि वो आउट उनका पूरा परिवार गुलावठी में मज़दूरी करता है और तिनका तिनका जोड़कर बेटी की शादी के लिए पैसे बैंक में जमा किये थे। बोली कि इतने दिनों से टीवी पे देख रही हूँ कि शादी वालों को ढाई लाख रुपये दिए जाएंगे लेकिन मैं तो रोज़ आ रही हूँ 2 लाख रुपये निकालने और ये लोग केवल 2,000 रुपये पकड़ा देते हैं बस। कह रहे हैं कि उन लोगों का बैंक अकाउंट लाओ उन लोगों का जिनको आपने पैसे देने है। अब वो अपने अकाउंट नंबर देने को तैयार नहीं हैं तो कहाँ से लाएं?

मैंने बैंक मैनेजर से पूछा कि अब तो रिज़र्व बैंक का नोटिफिकेशन भी आ गया है अब शादी वालों को पैसा क्यों नहीं दे रहे तो उन्होंने बताया कि नोटिफिकेशन तो आ गया है लेकिन हमारे सिस्टम में अपग्रेड नहीं हुआ इसलिये 24,000 रुपये जो नार्मल लिमिट उससे ज़्यादा हम नहीं दे सकते । साथ में बात ये भी है कि हमारे पास पैसा है ही नहीं देने के लिए। रोज़ाना करीब 5-8 लाख रुपये आते हैं अगर ये शादी वालों को 2.5 लाख रुपये के हिसाब से देने लगे तो सैकड़ों लोग खाली रह जाएंगे।

शादी वाले लोग इतने परेशान कि कोई मीडिया वाला एक बार उनको दिख जाए तो अपना दर्द बताकर बिलकुल ये उम्मीद करते हैं कि जैसे हम अभी उनकी समस्या का अंत कर देंगे बैंक से पैसे दिलवाकर। किसी की बेटी की शादी किसी के बेटे की शादी। शादी के लिए पैसा निकालने आये लोगों ने रिज़र्व की इस शर्त को अव्यवहारिक बताया जिसमे कहा गया है कि खाते से पैसा निकालने वाले को उन लोगों की डिटेल देनी होगी जिनको भुगतान होना है साथ ही उनसे ये लिखवाकर लाना होगा कि उनके पास बैंक खाता नहीं

राकेश कुमार के बेटे की शादी है। राकेश ने कहा कि भाईसाहब ऐसे कौन लिखकर दे रहा है और क्यों लिखकर देगा? किसीको क्या ज़रूरत पड़ी है ये लिखकर देने की?।
अपने बेटे की शादी के लिए 60,000 रुपये निकालने आई कुसुम ने बताया कि किस किस की जानकारी बैंक को दें शादी में इतने काम और इतने खर्च होते हैं।

इलाके के और भी बैंकों में गया तो पता चला कि अभी तो कहीं भी इस 2.5 लाख रुपये वाले ऐलान का पालन नहीं हो पाया है। कहीं सिस्टम अपग्रेड नहीं हुआ तो कहीं कहीं पैसा नहीं। जहाँ सिस्टम अपग्रेड हो गया और पैसा भी है वहां पैसा निकालने आये लोगों को बता दिया गया कि आप इन सब दस्तावेज को लेकर आएं तभी पैसा मिलेगा। लोग वापस लौट गए। जिस समय में लोगों को शादी की तैयारी करनी चाहिए उस समय में लोग पैसा निकालने की इस कागज़ी कार्रवाई में फंसे हुए हैं

कुछ बैंकों के अधिकारियों से मिला तो वो खुद रिज़र्व की पैसा निकालने के लिए  रखी इस शर्त पर हंस रहे थे और मुझसे पूछ रहे थे आपको क्या लगता है लोग ये दस्तावेज ला पाएंगे? इससे बड़ी बात बैंक के मैनेजर को खुद लोगों के इन दस्तावेजों या यूँ कहें सुबूतों को वेरीफाई करना होगा और ये बैंक मैनेजर की ज़िम्मेदारी होगी कि जिसको पैसा दिया गया वो वाकई इसका हक़दार था

ये बिलकुल ऐसा है जैसे लोग अपने खुद के बैंक अकाउंट से पैसा नहीं निकाल रहे हों बल्कि बैंक से लोन ले रहे हों।  हालाँकि आजकल तो लोन ज़्यादा आसानी से मिल जाता है नहीं मिल रहा तो बस अपने अकाउंट से नगद। ऐसे में मेरे मन में सवाल बना हुआ है कि बिना पैसे ये शादी कैसे होगी?

मैं गुलावठी के टेंट वालो, बैंड वालों, हलवाई और फूल वालों से मिला। एक आध को छोड़ सबके पास बैंक अकाउंट है। सबने कहा कि हम तो पैसा कैश लेते हैं चेक के चक्कर में कौन पड़े। चेक ले लो फिर बैंक के चक्कर लगाते रहो और वैसे भी हमको पैसा अपने कर्मचारी और मज़दूरों को देना होता है वो भी कैश लेते हैं चेक नहीं। और चलो मान लो हमने आज चेक ले लिया और उसके अकाउंट में पैसे ना निकले तो हम तो फँस जाएंगे ना?

असल में बात ये है कि शादी में काला धन लगता है इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन हर कोई शादी में काला धन ही लगाता है ये बात गलत है। ज़्यादातर लोग ऐसे ही होंगे जो जीवन भर तिनका तिनका जोड़कर अपनी मेहनत की कमाई से अपने बच्चों की शादी के लिए रकम जोड़ता है। अब अगर कैश से दूरी बनाने के लिए पहले से कोई व्यवस्था होती तो शायद इस बारे में सोचते लेकिन अचानक शादी के समय ही ये कह दिया जाए की कैश नहीं चेक से करो तो फिर ये शादी कैसे होगी? आखिर सदियों से चली आ रही परंपरा या चलन रातों रात या एक फैसले से चुटकी बजाकर नहीं बदला करते।

Friday, 18 November 2016

बड़े ऐलान, बिना पुख्ता प्लान

जो लोग ज़िन्दगी भर अपने बच्चों की शादी के लिए तिनका तिनका जोड़ कमाते हैं आजकल वही लोग बैंकों के बाहर अपना ही पैसा अपने ही अकाउंट से निकालने के लिए लाइन में लगे पाते हैं।

शुक्रवार को मैं दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर ग़ाज़ियाबाद ज़िले के मुरादनगर के रावली गांव गया। सिंडिकेट बैंक के अंदर घुसा ही था और बैंक के माहौल का अंदाज़ा लगा ही रहा था कि मेरे सामने बहुत सारे लोग फरियादी की तरह आकर खड़े हो गए। मैंने पूछा हाँ जी क्या समस्या है? मैंने पूछा ही था कि सब एक साथ शुरू हो गए

एक शख्स ने बताया कि मेरे दो बच्चों की 20 नवम्बर को शादी है और घर में नमक तक नहीं है। मैं यहाँ पैसे निकालने आया हूँ लेकिन ये लोग सिर्फ 2,000 रुपये दे रहे हैं। मैंने पूछा कि भाई सरकार ने गुरुवार को आप जैसे ज़रूरतमंद लोगों के लिए जिनके घर शादी है उनको ढाई लाख रुपये निकालने देने का फैसला किया है क्या आपने बोला बैंक वालों से? वो बोला हाँ जी बोला लेकिन वो कह रहे हैं दो हज़ार से ज़्यादा नहीं मिलेंगे। फिर अपने बच्चों की शादी का कार्ड दिखाया

मैं उनपर ध्यान देता इतने में एक मिथलेश नाम की महिला ने अपनी समस्या बतानी शुरू कर दी। बोली कि मेरी बेटी की शादी है 4 दिसम्बर को अब बताओ दो हज़ार में क्या होगा? मैंने उनसे पूछा कि आप लोगों को पता है ना कि सरकार ने आप लोगों के लिए 2.5 लाख रुपये तक निकालने के लिए इजाज़त दी है। वो बोली हाँ पता है लेकिन ये मना कर रहे हैं और बस 2 हज़ार दे रहे हैं अब बताओ दो हज़ार में शादी कैसे होगी?

एक के बाद एक शादी के लिए पैसे निकालने आये लोग मुझे अपनी समस्या बताये जा रहे थे और शादी के कार्ड दिखाये जा रहे थे। हर कोई चाह रहा था मैं उससे बात करूँ, उसकी तस्वीर अपने कैमरा पर लूँ। मैंने एक एक करके सबसे बात करी। बात करते हुए मुझे उन लोगों की लाचारी पर बहुत बुरा लग रहा था

मेरे मन में आ रहा था कि जीवन भर इन लोगों ने अपने बच्चों की शादी पर खर्च करने के लिए कमाया और आज वही पैसे ये अपने ही खाते से निकालने के लिए मेरे सामने फ़रियाद लगा रहे हैं कि शायद मुझसे बात करने से या मुझसे शिकायत करने से वो अपनी समस्या से निजात पा लेंगे।

ये क्या लाचारी है? ये कैसा दर्द है जिसको ये लोग झेलने को मजबूर हैं। शादी में पैसे का क्या रोल होता है ये कह तो हर कोई सकता है कि हाँ हम समझते हैं कि पैसा बहुत ज़रूरी है लेकिन सच बात ये है कि जो खुद शादी कराने की प्रक्रिया में सीधा जुड़कर खर्च करता है और ज़िम्मेदारी उठाता है केवल वही समझ सकता है कि पैसा कितना ज़रूरी है।

मैं बैंक मैनेजर से बात करने गया। उसने बताया भाईसाहब हमको रोज़ाना करीब 5-6 लाख ही कैश दिया जा रहा है। ऐसे में अगर हम सबको उतना दे देंगे जितना वो मांग रहे हैं तो कुछ ही लोगों को पैसा मिल पायेगा इसलिये हम 2-2 हज़ार दे रहे हैं जिससे काफी लोगों को कुछ पैसा तो दिया जा सके। आप ही सोचिये अगर शादी के लिए ढाई लाख रुपया दे दिया तो 2-3 लोगों को ही पैसा मिल पायेगा और बाकी सारी लोग ऐसे ही रह जाएंगे। हम देना चाहते हैं लेकिन हमारे पास है नहीं।

बैंक मैनेजर की बात भी सही है। असल में समस्या यही है कि सरकार बस बड़े ऐलान कर रही है लेकिन उसके लिए कोई प्लान नहीं कर रही। शादी के ढाई लाख रुपये देने का ऐलान कर दिया सरकार ने लेकिन उसको लागू कराने के लिए बैंकों के पास पैसा ही नहीं है तो मिलेंगे कहाँ से?

शादी के ढाई लाख रुपये छोड़िये सरकार ने अपने खाते से एक बार में 24,000 रुपये तक निकालने देने का ऐलान किया था वो भी लागू नहीं क्योंकि कैश है ही नहीं। बैंक में ही एक किसान भाई मिले बोले मुझे दिल का ऑपरेशन कराना है किसान हूँ न तो मुझे नार्मल तरीके से 24,000 रुपये मिल रहे हैं और ना मुझे किसान के तौर 25,000 रुपये मिल रहे हैं जिसका गुरुवार को सरकार ने ऐलान किया। एक आदमी 10,000 रुपये बैंक से निकालना चाहता था क्योंकि उसकी पत्नी प्रेग्नेंट है और निजी अस्पताल में भर्ती है लेकिन क्या करें किसको समझाएं? किसको मनाएं?

मैं बैंक मैनेजर से बात करके आया तो सभी लोगों ने मुझे फिर पूछा 'साहब हमें पैसा मिल जाएगा ना?' मैंने उनको समझाया कि पैसा ही नहीं है तो वो दे कहाँ से? वो बोले सर ये रोज़ाना यही बोल रहे हैं। इस बीच एक बेहद वृद्ध महिला आई और बोली 'ए भैया मुझे तो 17,000 रुपये दिलवा दे इनसे मेरी धेती (बेटी की बेटी) की शादी है उसमें हमें भात देना है। इन सब लाचारों के बीच मैं खुद को बहुत लाचार महसूस कर रहा था।

बैंक के बाहर लोग मुझे अपनी समस्या बहुत गुस्से में आकर बता रहे थे और बता रहे थे कैसे ये बैंक का ATM चलता ही नहीं। इसी बीच एक शख्स जो कि उस बैंक वाली लाइन और भीड़ का हिस्सा नहीं था वो आया और कुछ बोलने का इच्छुक दिखा। मैं माइक लगाया तो वो बोला 'ऐसा है मोदी जी का ये फैसला बहुत अच्छा है हाँ लोगों को परेशानी हो रही है क्योंकि लागू ठीक तरीके से नहीं किया गया लेकिन योजना बहुत अच्छी है और मोदी ज़िंदाबाद'। मैंने सोचा पता नहीं अगर लोग अपनी समस्या बता रहे है और मीडिया लोगों की समस्या दिखा रहा है तो कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि पीएम या केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है या नाम खराब हो रहा है?

अरे मीडिया समस्या दिखाता है क्योंकि लोकतंत्र में ये उसका काम होता है। समस्या दिखाकर सरकार को किसी योजना को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलती है। क्योंकि सरकार कोई एक व्यक्ति नहीं पूरा सिस्टम होता है ऊपर के स्तर पर क्या कहा गया है और नीचे ज़मीन पर आते आते अक्सर किसी योजना के लागू होने में समस्या आती है। समस्या दिखाकर सरकार और आम जनता की असल में मदद ही होती है क्योंकि सरकार उसका संज्ञान लेकर आम जनता को समस्या से निजात दिलाती है।

खैर अब मैं मुरादनगर के खिमावती गांव की ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स पहुंचा। मैं करीब 1 बजे पहुंचा। 2 मिनट बैंक के बाहर लगी लाइन का जायज़ा ले रहा था कि अंदर से खबर आई कि पैसा ख़त्म हो गया। लोगों ने भारी नाराज़गी में बोलना शुरू रोज़ का यहाँ यही तमाशा है रोज़ ये सुबह 10 बजे शुरू करके 3 घंटे में ख़त्म कर देता है।

मैं बैंक के अंदर गया वाकई पैसा ख़त्म हो गया था। यहाँ भी लोगों को दो हज़ार देकर ही निपटाया जा रहा था और नोट बदली तो यहाँ हो ही नहीं रही थी। बैंक मैनेजर ने बताया केवल 4 लाख रूपये आये थे । बैंक मैनेजर ने बताया शादी वालों के लिए 2.5 लाख रुपये तो नहीं 10,000 रुपये देने की कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन 10,000 भी कितनों को मिल पा रहे हैं। एक सज्जन जिनके बेटे की शादी थी बताने लगे मैं तीन दिन से आ रहा हूँ और एक भी पैसा नहीं मिल पा रहा। हमारा नंबर आने से पहले ही कैश ख़त्म हो जाता है और ये बैंक वाले पर्ची फाड़ देते हैं। आम लोग बैंक वालों पर गुस्सा ज़ाहिर कर रहे थे और बैंक वाले पर्ची दिखा रहे थे कि देखो आज चार लाख रुपये ही आये हैं हम क्या करें?

ऐसी तस्वीर या ऐसे हालात केवल इस एक जगह के नहीं बल्कि मैं जिस ग्रामीण इलाके में जा रहा हूँ वहां यही सब दिख रहा है। ना एक बार में 24,000 रुपये सामान्य रूप से अपने खाते से कोई निकाल पा रहा है और ना शादी के लिए के लिए सरकार के ऐलान के बावजूद किसी को ढाई लाख रुपये मिल पा रहे हैं। किसान को गेहूं बुवाई के लिए उसके अपने खाते से 25,000  रुपये नहीं निकालने नहीं दिए जा रहे बावजूद केंद्र सरकार की घोषणा के। व्यापारी को अपने करंट अकाउंट से पचास हज़ार रुपये निकालने की इजाज़त की घोषणा हुई लेकिन वो भी नहीं मिल रहे

सरकार और RBI लगातार कह रहे हैं कि 'कैश की कोई कमी नहीं' लेकिन ज़मीनी स्तर पर गांव और छोटे शहर में जाकर पता कर लीजिए हर कोई बस यही कह रहा है 'कैश है नहीं तो दें कहाँ से'। सरकार के सारे दावे और वादे दिल्ली से बाहर निकलते ही बेमतलब से लगते है। मीडिया भी बस बड़े शहरों पर ज़्यादा ध्यान देता है इसलिये सरकार भी ज़्यादातर ध्यान वहीँ है।

हालाँकि इस योजना के ख़िलाफ़ लोग नहीं हैं क्योंकि लोगों को उम्मीद है इससे दो नंबर का पैसा या काला धन वालों का नुक्सान होगा ईमानदार लोगों का नहीं लेकिन इसके चलते जो परेशानी ईमानदार लोगों को ही ज़्यादा होती दिख रही है क्योंकि घंटों लाइनों में लगकर ज़्यादातर लोग 2-4 हज़ार बदलवा रहे हैं या हज़ार-लाख रुपये खातों में जमा करा रहे हैं। करोड़ों रुपये काला धन रखने यहाँ लाइनों और बैंकों में क्या करेंगे।

Friday, 11 November 2016

नोटबंदी पर अब सब्र टूट रहा है

शुक्रवार सुबह मेरे पास ख़बर आई कि चांदनी चौक इलाके में 
छापेमारी चल रही है। मैं चांदनी चौक के दरीबा इलाके में पहुंचा जहाँ एक दुकान के बाहर कुछ भीड़ लगी थी। मैंने दूकान की तरफ देखा तो वहां करीब 4 पुलिस वाले दूकान के बाहर बैठे हुए थे। दूकान का शटर नीचे से एक हाथ खुला हुआ था। क्या इसी दुकान में इनकम टैक्स की रेड हो रही है? ये बात जानने के लिए मैंने आसपास खड़े ज्वेलर्स और ड्यूटी पर बैठे पुलिस वालों से पूछा तो सबने बता दिया।

अब मैं कुछ देर वहां रूककर अपनी रिपोर्ट के लिए तथ्य जुटाने और माहौल भांपने में लग गया। मुझे माहौल गुरुवार के मुकाबले शुक्रवार को कुछ बदला बदला सा लगा। कल तक व्यापारी पीएम मोदी की नोटबंदी की नीति से परेशान तो हो रहे थे लेकिन ना तो उनसे नाराज़ थे और ना ही आलोचना कर रहे थे लेकिन आज व्यापारी खासे नाराज नज़र आ रहे थे। व्यापारी कह रहे थे 'मोदीजी ने नास करवा दिया हमारा और खुद जाकर जापान में बैठ गए'

लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा मैं टीवी वाला हूँ और मेरे हाथ में माइक और साथ में कैमरा भी है वो चुप हो गए। जैसे ही मैंने पूछा आप क्या यहीं के ज्वेलर हैं? वो घबरा गए और पलक झपकते ही वहां से चले गए। मैंने कुछ और लोगों से बात करी तो ज़्यादातर लोग या तो बचते नज़र आये या एक संतुलित सी बात बोलते नज़र आये

अब बाजार खुलने का समय हो गया था लेकिन एक भी दूकान नहीं खुली थी। मैंने कैमरा पर रिपोर्टिंग शुरू की। वहां खड़े लोगों ने कैमरा पर कहा कि ज़्यादातर ट्रेडर्स ईमानदार हैं केवल 1% की वजह से 99% को परेशान किया जा रहा है जिसके चलते व्यपारी दहशत में हैं और इसीलिए दुकानें सब बंद है

ऑफ कैमरा और ऑन कैमरा के इस अंतर को समझते हुए मैंने अपनी लाइव रिपोर्ट में भी शामिल किया क्योंकि मुझे अब एहसास होने लगा था कि इनकम टैक्स के छापों से अब व्यापारी वर्ग में वो नाराज़गी दिखने लगी है जो कल तक नहीं दिख रही थी। खैर नाराज़गी हो तो भी क्या फ़र्क पड़ता है? जिसने गलत किया होगा वो भुगतेगा ही। ये सोचकर मैं आगे बढ़ गया

दरीबा कलां से अब मैं देश के सबसे बड़े सराफा बाजार कूंचा महाजनी पहुंचा। आयकर के छापों के चलते वे बाजार गुरुवार को बंद हुआ था और अब शुक्रवार को भी बंद ही था । मैं कूंचा महाजनी की गली में घुसा तो दूकान तो सब बंद थी लेकिन लोग वहां इधर से उधर घूमते, बैठे, बातें करते नज़र आ रहे थे।

लेकिन जब मैं उनसे पूछता कि आप क्या के व्यापारी हैं या ज्वैलर हैं तो वो ये कहकर कि 'नहीं हम तो यहाँ आये हुए थे' इधर उधर देखने लगते। लेकिन मैं जानता था कि ये लोग कोई बाहर से आये हुए नहीं  बल्कि यहीं के ट्रेडर,कमीशन एजेंट, कर्मचारी या मज़दूर हैं। मैंने कुछ समय और बिताया तो वहां मौजूद लोग कहने लगे कि 'भाईसाहब शादी का पीक सीजन है इस समय यहाँ इतना काम होता था कि हम दिन में खाना तक नहीं खा पाते थे और ऐसे समय में सरकार ने ये काम कर दिया'

थोड़ा गली में और जाकर माहौल टटोलने की कोशिश की तो एक व्यापारी बोला कि 'भाईसाहब जब हमने एक्साइज ड्यूटी लगाये जाने के विरोध में दो महीने दूकान बंद रखी तब किसी को के ख़याल नहीं आया कि हमारे घर कैसे चल रहे होंगे हम अपने लोगों को तनख्वाह कैसे दे रहे होंगे लेकिन कुछ व्यापारियों ने किलो के भाव महंगा सोना बेच दिया तो सब लग गए हमारे पीछे?'

असल में खबर यही थी कि लोग अपना काला धन दोगुनी कीमत पर सोना खरीदकर एडजस्ट करने में लगे हैं जिसके बाद सराफा कारोबारी और ज्वेलर्स पर छापे पड़े। और छापों की दहशत में सारा बाजार ही बंद हो गया

अब मैं खारी बावली की तरफ बढ़ा जो कि देश की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट और किराना मार्किट है। इसके लिए जब मैं कूंचा महाजनी से ई-रिक्शा में बैठकर जाने लगा तो मेरे कैमरापर्सन ने याद दिलाया हमारे पास देने के लिए खुले पैसे नहीं है लिहाज़ा मैं वहां से पैदल खारी बावली के चल पड़ा

पैदल चलते वक़्त चांदनी चौक के इस पूरे बाजार की तस्वीर देखकर मैं हैरान था। मेरे दोनों तरफ लोगों की लंबी लंबी लाइन एक लाइन चले ही जा रही है ख़त्म ही नहीं हो रही और ख़त्म हुई तो दूसरी शुरू हो गई। क्योंकि चांदनी चौक का इलाका ट्रेड हब है और वहां सारा काम नगद होता है इसलिए वहां कुछ कुछ दूरी पर बैंक और एटीएम हैं। एटीएम में लाइन, बैंकों में लाइन इतनी लंबी लाइन मैंने जीवन में पहली बार देखी थी।

मैं चलता जा रहा था और लाइन भी चलती जा रही थी। ऐसी तस्वीरें मैं फिल्मों में देखी थी जिसमे 70 के दशक में देश का क्या हाल था पता चलता था जिसमे सस्ते राशन के लिए लोग घंटों लंबी लाइन में लगते होंगे। अरे आज के समय में मुफ़्त रिलायंस जियो के सिम कार्ड के लिए छोटी सी लाइन देखकर ही मैं आश्चर्य करने लगा था लेकिन ये लंबी लंबी लाइन और इसमें घंटों से खड़े लोग और गज़ब भीड़ देखकर मैंने इनके धैर्य को सलाम किया कि अचानक एक बैंक एटीएम के बाहर मारपीट दिखने लगी। कोई शख्स लाइन में बीच में घुसकर अपने नंबर से पहले आगे आने की कोशिश में था कि दूसरे किसी शख्स ने उसमे दो रख दिए जवाब में इस शख्स ने भी दो रख दिए। खैर मेरे कैमरा के पहुँचते ही मामला शांत हो गया

चांदनी चौक की ज़्यादातर दुकानें बंद थी। जो खुली भी थी वहां दुकानदार खाली बैठे थे। खाली कैसे नहीं बैठेंगे लोग तो सारे बैंकों और एटीएम पर खड़े थे। हालात इतनी खराब थी कि कुछ दुकानदारों को तो मैं उनके काउंटर के ऊपर या यूँ कहें कि गल्ले के ऊपर बैठकर अपने मोबाइल के फीचर्स का फायदा उठाकर अपना टाइम निकाल रहे थे

अब मैं खारी बावली पहुंचा जहाँ ज़्यादातर दुकानें बंद थी। ऐसा लग रहा था जैसा आज रविवार छुट्टी का दिन है। कुछ दुकानें खुली थी लेकिन ग्राहक का कोई  अता-पता नहीं था। एक दुकानदार से पूछा कि क्यों बंद हैं सब दुकानें तो उन्होंने बताया कि जब लोगों पर पैसा ही नहीं है हमारे पास ग्राहक नहीं तो दूकान खोलकर क्या करेंगे? हम भी बस इसलिये बैठे हैं क्योंकि घर पर जाकर क्या करेंगे? बिना मतलब तनाव होता है

मैंने सोचा कि इन लोगों ने सालों से बाजार में खूब कमाया है और काला धन भी यहाँ के व्यापारियों के पास हो सकता है लेकिन बाजार में मज़दूर और गाडी से माल दिल्ली एनसीआर में सप्लाई करने वाले लोग खाली बैठे दिखे। मनसा राम नाम के मज़दूर ने बताया कि रोज़ाना 200-300 रुपये कमा लेते थे लेकिन अब दो दिन से बोनी भी नहीं हुई जैसे तैसे खाना खा रहे हैं। योगेश नाम के माल सप्लाई करने ने बताया कि घर में 6 लोग हैं, यहाँ से रोज़ाना 600-700 रुपये काम लेता था लेकिन जब ग्राहक ही नहीं आ रहा तो दिन से खाली बैठे हैं। इनके बारे में तो मैं ही नहीं आप भी कह सकते हैं कि इनके पास ना तो काला धन होगा ना ही नोटबंदी की योजना इनपर हमले के लिए बनी होगी लेकिन ये पिस रहे हैं।

अब जब मैं कैमरा पर इसको रिकॉर्ड कर रहा था तो कुछ व्यापारियों ने 'मोदी हाय हाय' के नारे लगाने शुरू कर दिए। मैंने कहा भाईसाहब अभी रुको आपसे बात करूँगा पहले इनसे शान्ति से बात करने दो क्योंकि शोर मचाकर हल्ला करके बात समझ नहीं आती। वो कुछ देर रुके लेकिन जैसे ही मैं कैमरा पर रिपोर्ट ख़त्म करने लगा उन्होंने फिर हल्ला करना शुरू कर दिया और बोलने लगे 'मीडिया बिकी हुई है सबको मोदी ने खरीद लिया है'

मैं इन लोगों से भी ज़रूर बात करने वाला था लेकिन मैं सोच ये वाली रिपोर्ट लंबी हो रही है अगले में इनका गुस्सा कवर करूँगा लेकिन व्यापारी अधीर हो रहे थे। व्यापारी बोलने लगे 'मीडिया को मोदी ने खरीद लिया है', 'कोई सा भी मीडिया एक शब्द मोदी के खिलाफ नहीं दिखा रहा', हम यहाँ मर रहे हैं और मीडिया वाले दिखा रहे हैं कि लोगों में जश्न का माहौल', 'किसी मीडिया ने सरकार के इस कानून का विरोध किया क्या' 

इन लोगों की बात सुनकर मैंने कहा कि आप कर लीजिए विरोध वो बोले आप हमारी बात लोगे ही नहीं। मैं इनके ये विचार लेने कैमरा पर लेने जा रहा था लेकिन मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि ये लोग कौन हैं जिससे पता चले कि किस वर्ग के क्या विचार हैं। मैंने आक्रामक हो रहे एक दो लोगों से पूछा क्या आप व्यापारी हैं आपकी दूकान यहीं है?
वो लोग बोले वाह हम आपको बता दें और उसके बाद हमारी भी ऐसी तैसी कराओगे आप?

ये व्यापारी ही थे लेकिन मैं इनसे बात करता इतने में कुछ दूसरे व्यापारियों ने उनको शांत कराकर मुझे रोका और उनको वहां से चलता कर दिया। मैंने पूछा अरे भाईसाहब बोलने दो न उनको सबके विचार आने चाहिए। वो बोले अरे भाईसाहब ऐसी बातों का कोई फायदा है क्या? कुछ उल्टा सीधा बोल दो और फिर नतीजा भुगतो!

लेकिन मैंने गुस्सा हो रहे व्यापारियों को उनकी दुकानों पर जाकर खोज निकाला और पूछा अब बताओ भाईसाहब क्या कहना चाहते हैं आप?। अब उन व्यापारी भाईसाहब ने अपने तेवर नरम किये और कहा 'भाईसाहब मैं तो केवल इतना कह रहा था कि कुछ लोगों की वजह से सब लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए' ।

कुल मिलाकर ये समझ आया कि कोई व्यापारी पॉइंट आउट नहीं होना चाहता इसलिये आलोचना करता कैमरा पर नहीं दिखता वरना नाराज़गी तो दिखने लगी है। परेशान वो भी है जिसके कुछ गलत किया होगा और परेशान वो भी है जिसने कुछ गलत नहीं किया है। फर्क सिर्फ इतना है कि गलत करने वाला केवल मानसिक तौर पर परेशान है जबकि गलत नहीं करने वाला आज मानसिक और शारीरिक दोनों तौर पर परेशान है।