मैं नोटबंदी का समर्थक हूँ
क्योंकि देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मानता हूँ कि काला धन नाम की दीमक को ख़त्म करने का ये अच्छा उपाय हो सकता है
8 नवम्बर की रात जब पीएम मोदी ने ऐलान किया तो मैंने इसको सकारात्मक रूप से लिया
एक रिपोर्टर के नाते इससे लोगों को हो रही परेशानियां कवर की
सरकार के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त को सामने लाने का धर्म भी निभाया
तमाम परेशानियों के बीच जितने लोगों से मैं मिला ज़्यादातर बोले कि मोदीजी का निर्णय तो अच्छा है लेकिन ये बैंक वाले गड़बड़ कर रहे हैं और हमको पैसा नहीं दे रहे बस अपने ख़ास लोगों को पैसा बाँट दे रहे हैं
लेकिन अब 4 हफ़्ते की नोटबंदी के बाद आम लोगों और मेरे मन कुछ सवाल उठ रहे है
सवाल
सवाल ये है कि जब RBI के निर्देश के मुताबिक आम लोग अधिकतम ₹24,000 और व्यापारी लोग ₹50,000 हर हफ़्ते ही बैंक से कैश निकाल सकते हैं(वैसे तो इतने भी नहीं मिल रहे ज़्यादातर को)
तो फिर ये ₹2,000 के नोट की गड्डियां (₹2,000×100 नोट मूल्य 2 लाख)कैसे घूम रही हैं मार्किट में जिनको कमीशन पे बेचा और खरीदा जा रहा है।
ध्यान दीजिए कि RBI के निर्देश के मुताबिक वो देश का सबसे बड़ा उद्योगपति क्यों ना हो उसको निजी तौर पर केवल 24,000 रुपए यानी 2,000 के 12 नोट प्रति हफ़्ते और अपनी फर्म/कंपनी के नाम पर 50,000 रुपये यानी 2,000 के 25 नोट प्रति हफ़्ते ही मिल सकते हैं तो ये 100 नोट की 2,000 रुपये की गड्डी जिसका मूल्य 2 लाख रुपये है वो बैंक के अलावा किसी के पास कैसे हो सकती है?
और पुराने 500 और 1000 के नोट के बदले ये कमीशन पर खूब सप्लाई की जा रही हैं।
क्या ये RBI और सरकार के सिस्टम को कटघरे में खड़ा नहीं करता?
क्या इससे नोटबंदी की योजना निरर्थक नहीं हो रही?
क्या आम लोगों का वो संघर्ष बेकार जाता नहीं दिख रहा जो उन्होंने घंटों/दिनों बैंकों/ATM के आगे लाइन में लगकर किया?
क्या इससे ये सन्देश नहीं जाता कि काला धन वाले अपने पैसे के दम पर सरकार को मुंह चिढ़ा रहे हैं और आम लोग खुद के साथ धोखा हुआ महसूस कर रहे हैं?
मेरी बात पर यकीन ना हो तो मेरे आगे बताये अनुभव के आधार पर खुद सोचियेगा। 8 नवम्बर की रात से कालाधन वाले दहशत में थे और आम लोग खुश थे लेकिन आज आप किसी भी काला धन वाले से बात कीजिये वो सब खुश हैं क्योंकि नोट बदल गए होंगे और किसी भी आम आदमी से बात कीजिये वो परेशान होगा क्योंकि उसकी मेहनत की कमाई बैंक से निकल नहीं पा रही
देश के आम लोग कह रहे हैं 'योजना तो ये अच्छी है लेकिन ठीक से लागू नहीं हो रही' और मैं कहता हूँ 'योजना तो सरकार की ज़्यादातर अच्छी ही होती है लेकिन ठीक से लागू भी तो होनी चाहिए, अगर ठीक से लागू ही नहीं हुई तो उस योजना का फायदा क्या हुआ?'
आपका सवाल उचित है, पर आपको RBI या सरकार को जिम्मेदार ठहरानेके बजाय उन मुफ़्तखोर गीने-चुने बँक के अधिकारियों कीं खुदगर्जी पर सवाल ऊठाने चाहिये थे। देश बदलना है केहनेसे देश नहीं बदलता.. उसमे अपना क्या योगदान हो सकता है उसकी संभावनाये जानकर अपना योगदान करना चाहिये। आप एक पत्रकार है, यहां पर ब्लॉक लिखकर नोटबंदी कीं खामिया पर तंज कसने के बजाय अगर आप सरकार एवं RBI को इसपर सुझाव देते और साथ हीं अपनी पत्रतारीका के सहारे उन बेइमानोको बेनकाब करते तो आपका ब्लॉक बेहद सराहनिय केहलाता।
ReplyDeleteमाना कीं खामिया है इस लढाई के हथियारो में,
पर जझ्बा बुलंद हो देश को जितानेका..
तो हम खडे हो सकते है होसला बढ़ाने में ।।
जय हिंद ।।।
आज स्थिति यह आ गयी है कि सरकार तानाशाही भरे निर्णय ले रही है, आम आदमी परेशान तो है लेकिन चुपचाप सहयोग कर रहा है तो सरकार कहती है कि जनता ने हमारे निर्णय का समर्थन किया है।
ReplyDeleteयदि जनता/जनता का एक वर्ग इसका विरोध करता है तो वे लोग राष्ट्र द्रोही और विकास विरोधी हैं।
वाह री सरकार!
वाह रे सरकार के तलुवे चाट ने वाले पत्रकार और समर्थक!
सरकार (सेवक ) ने जनता (मालिक) से उसकी एक एक पाई का हिसाब मांग लिया ।जनता दे भी रही है जनता देश के लिए हर कष्ट को खुशी खुशी सहने के लिए तैयार है ।
ReplyDeleteलेकिन क्या अब हमारे प्रधानमंत्री अपने तथा अन्य सभी दलो का हिसाब जनता को दिला पायेंगे ।यह देखना अभी बाकी है ।अगर ऐसा नही होता है तो वर्तमान चौकीदार की निष्ठा पर सवाल उठेगा ही।
बढ़िया ब्लॉग। पहले लगता था, मंशा अच्छी है, मैनेजमेंट ख़राब है। अब स्वाइप मशीन वाले भिखारी का किस्सा सुनके लगता है कि मंशा भी खोखले हुड़दंग भर की थी।
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